जनसंदेश टाइम्स: मानवाधिकार हनन की जांच करेगा श्रम विभाग
उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित एनआरएचएम घोटाले में जेल की हवा खा रहे पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के कृपापात्र अखबार जनसंदेश टाइम्स के बनारस यूनिट में कर्मचारियों के उत्पीड़न मामले में राष्टृीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर बनारस के जिलाधिकारी ने जांच और कार्रवाई की जिम्मेदारी श्रम विभाग को सौंपी है। बनारस में जनसंदेश प्रबंधन द्वारा कर्मचारियों के उत्पीड़न मामले में मिली शिकायत पर मानवाधिकार आयोग ने जिलाधिकारी को आवश्यक कार्रवाई का निर्देश देते हुए रिपोर्ट तलब किया था। आयोग के निर्देश पर जिलाधिकारी ने उप श्रमायुक्त को तत्काल मामले की जांच कर आवश्यक कार्रवाई का निर्देश देते हुए आयोग को भेजने के लिए कार्रवाई रिपोर्ट देने को कहा है।
गौरतलब है कि प्रदेश में कुछ वर्ष पहले जनसंदेश टाइम्स अखबार की कई शहरों से अचानक धमाकेदार शुरुआत हुई। एनआरएचएम घोटाले के चलते बेशुमार दौलत के मालिक बने और अब उसी के चलते जेल की हवा खा रहे बाबू सिंह कुशवाहा के कृपा पात्र इस अखबार में शुरू से सामने चमकने वाले चेहरे और वास्तविक चेहरे अलग-अलग थे, लेकिन सबका रिमोट नियंत्रण वाराणसी के चर्चित बिल्डर और आर्किटेक्ट अनुराग कुशवाहा के पास रहा। अखबार में चेहरे बदलते रहे लेकिन रिमोट नियंत्रण बाबू सिंह कुशवाहा की विशेष कृपा के चलते अनुराग कुशवाहा के पास ही रहा। घोटालों की बुनियाद पर शुरू हुए इस अखबार में शुरू से ही बुनियादी घोटालों की छाप से बचने के लिए धोखाधड़ी का खेल शुरू हो गया। गोरखपुर के रहने वाले अनुज पोद्दार को सामने लाकर और गीता प्रेस से जुड़ा बताकर कई प्रमुख अखबारों के जमे जमाये दिग्गजों को इमोशनल ब्लैकमेल कर वे जो पा रहे थे उससे आधे वेतन में जनसंदेश ज्वाइन कराया गया। सपना दिखाया गया आदर्श पत्रकारिता का। लेकिन जब सच सामने आया तो ऐसे लोगों के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी। बाबू सिंह कुशवाहा और उनकी मंडली की अपराधी छवि को बदलकर मसीहा साबित करना ही इस अखबार का लक्ष्य बन गया। जिसने इससे नाक-भौंह सिकोड़ा उसे बेइज्जत कर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। एनआरएचएम घोटाले की तरह यहां भी नियमों-कानूनों की धज्जियां उड़ायी गयी। परिणाम अब सामने है, प्रबंधन की इस करनी और कर्मचारियों की आह का फल सामने आने लगा है। कर्मचारियों का पीएफ डकारने के प्रयास के मामले में एफआईआर दर्ज होने के साथ ही अब प्रबंधन के जेल जाने का खतरा मंड़रा रहा है, वहीं प्रिंट लाइन में धोखाधड़ी पर टाइटल रद होन का संकट भी पैदा हो गया है। इसे मीडिया के काले खेल की नजीर ही कहा जायेगा कि मात्र तीन साल में ही अखबार की प्रिंटिंग मशीन बंद हो गयी और अब चर्चा है उसको बेचने का सौदा भी तय हो गया है। कुल मिलाकर ये तस्वीर यही बयां कर रही है कि जनसंदेश प्रबंधन के काले खेल का यह अंतिम दौर है।