कल्पतरु एक्सप्रेस की कथा (3) मलाई काटने वालों की नौकरी भी सुरक्षित
आगरा, मथुरा और लखनऊ से प्रकाशित हिन्दी दैनिक ‘कल्पतरु एक्सप्रेस’ ने बड़ी बेरहमी से अपने उन 40 पत्रकारों कोबाहर का रास्ता दिखा दिया जो पूरी निष्ठा के साथ काम कर रहे थे और कम्पनी के हित में अपना हित देखते थे लेकिन संस्थान में कार्यरत एेसे लोगों की नौकरी सुरक्षित है जो इस बैनर का इस्तेमाल करते हुए अपना हित साधने में लगे हैं तथा सत्ता के गलियारों और अपने कई-कई धंधों से मलाई काट रहे हैं।
लखनऊ कार्यालय में कार्यरत दो पत्रकार इस मामले में सबसे आगे हैं। हालांकि उनके बारे में उनके गोरखधन्धे के बारे में पहले भी मीडिया साइटें कुछ सच उजागर कर चुकी हैं। लखनऊ कार्यालय में अधिकारी हैं वे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव को करीबी बताते हैं। वह खुद को भी लखनऊ में संस्थान का मालिक समझते हैं और यह दिखाने में लगे रहते हैं कि संस्थान उसकी जेब में हैं। उनके गोरखधन्धे का आलम यह है कि संस्थान में सम्पादकीय विभाग का हिस्सा न होने के बावजूद उन्होंने सूचना विभाग से मान्यता ले रखी है। सूचना विभाग की डायरी में उसका नाम कल्पतरु एक्सप्रेस के एक अधिकारी के तौरपर छपता है। संस्थान के लोग जानते हैं कि किस प्रकार सूचना विभाग का यह मान्यता प्राप्त पत्रकार अखबार में एक भी पंक्ति लिखते पढ़ते नहीं है। वास्तव में उसकी मान्यता प्रदेश के सूचना विभाग की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिह्न है। मान्यता के साथ ही उसके पास पत्रकारों के कोटे में आवण्टित सरकारी मकान भी है। उसके नाम राजधानी के पॉश इलाके अलीगंज के सेक्टर ई में एमआईजी फ्लैट आवण्टित है। राज्य सम्पत्ति विभाग की इस कालोनी में राजधानीके कई प्रमुख पत्रकार रहते हैं।