उत्तर प्रदेश पुलिस अपनी कमी छिपाने के लिए अपनी लापरवाही का राजदार मीडिया कर्मियों को भी बना रही है। इसका उदाहरण तो सहारनपुर में देखने को मिला। सहारनपुर के डीआईजी ने यातायात माह की कमजोरी छिपाने के लिए तो पत्रकारों के भी वाहन चैक कराए। यह चैकिंग यातायात पुलिस की मौजूदगी में कुछ तथाकथित (अपना पत्र झोले में लेकर चलने वालों से) पत्रकारों से कराए। ऐसे पत्रकारों का यहां एक गिरोह है जो पुलिस में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए सुबह से शाम तक डीआईजी से लेकर थाने तक का चक्कर काटता है। ऐसे पत्रकारों के बारे में मूर्धन्य पत्रकार प्रभाष जोशी ने अपने संपादकीय में लिखा था कि इनका संपादक थाने का दारोगा होता है। इन पत्रकारों ने डीआईजी का मौखिक आदेश पाकर दर्जन भर पत्रकारों से आई कार्ड मांगा न रहने पर उनका भला बुरा भी कहा। ऐसा इस लिए भी हुआ कि कलम को कोसो दूर छोड़ चैकिंग करने में लगे तथा कथित पत्रकारों को सही पत्रकार की पहचान ही नहीं थी। असल पत्रकारों के बेदज्जत होने की पीड़ा का उजागर करने में निर्भिक पत्रकारिता में शुमार किए जाने वाला पंजाब केसरी (जलंधर) ने निर्भिकता दिखाई और उनके दर्द को छापा।
अपनी कमी छिपाने का राजदार मीडिया को बना रही है यूपी पुलिस
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