विकास मिश्रा की आपबीती

vikash

Vikas Mishra। बात 2005 की है। मेरे भतीजे का नया-नया एडमिशन दिल्ली के श्यामलाल कॉलेज में हुआ था। 18 साल का था, देह-दशा से मजबूत, छह फीट से थोड़ा लंबा। थोड़ा मासूम तो ज्यादा सा भावुक। तगड़ा था, मौका पड़ने पर दो चार को गिरा देने की ताकत भी थी। मैं उस वक्त चैनल-7 (अब आईबीएन-7) में था, दिल्ली में दूसरी पारी की शुरुआत थी। एक दिन अचानक दोपहर में कॉलेज कैंपस के थाने से फोन आया, भतीजे का नाम लेकर पूछा कि ये बच्चा आपका है..? मैंने कहा-हां..। थानेदार ने कहा कि फौरन कॉलेज आ जाइए। बाइक स्टार्ट की, आंधी-तूफान की तरह कॉलेज पहुंचा। थाने में थानेदार थे, उनके सामने दो लड़कियां, एक लड़की का कथित चाचा भी। मुझे बताया गया कि आपके भतीजे ने इस लड़की के साथ छेड़छाड़ की है। बस स्टैंड पर इसी छेड़छाड़ के चक्कर में मारपीट हुई है। फिलहाल आपके भतीजे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो गई है, उसको मेडिकल के लिए भेजा गया है। इसके बाद लड़की शुरू हो गई-अंकल, ये रोज मेरा पीछा करता था, आज तो हद कर दी, मैं बस में जा रही थी, तो वहां दौड़कर मुझे आई लव यू-आई लव यू बोलने लगा। उसके बाद कुछ लड़कों ने रोका तो उनसे उलझ गया। मारपीट हो गई उसके साथ। लड़की के आंसू देखकर मेरे भीतर न्याय का देवता प्रगट हुआ। मैंने कहा-अगर मेरे भतीजे ने ऐसा कुछ किया है तो मारपीट क्या, उसे गोली भी मार दी गई होती तो मुझे ऐतराज नहीं होता।

करीब घंटे भर बाद भतीजा पुलिस वालों के साथ वापस थाने पहुंचा। मेरे सामने ज्यादा बोलने की उसकी हिम्मत नहीं पड़ती थी, लेकिन ये मामला तो पानी सिर के ऊपर बहने का था। भतीजा आया, पूरा चेहरा सूजा हुआ था। आंख के नीचे चोट का गहरा निशान। पूरी आंख सूजी हुई। उसने अपनी बातें रखीं, तो नई कहानी सामने आई। पता चला कि लड़की उससे दो साल सीनियर बैच की है। कॉलेज में छात्रों के किसी प्रोग्राम की तैयारी चल रही थी। सभी बैच के लोग अपना-अपना अभ्यास कर रहे थे। हमारे भतीजे का जूनियर ग्रुप था। एक दिन सीनियर ग्रुप के चार लड़के आए और बदतमीजी करने लगे। हमारे भतीजे का एक ने कॉलर पकड़ लिया, फिर क्या था, गोरखपुरी खून उबल गया, उसने कहा-सर कॉलर छोड़ दीजिए, जब तक सम्मान कर रहे हैं, कर रहे हैं, वरना आप जैसे सात आठ को गिराने में सात-आठ मिनट नहीं लगेगा। ये कहानी उसने घर पर बताई भी थी।

उसके बाद उन लड़कों से उसकी ठन गई। उस दिन बाकायदा तैयारी से आए थे सब। मेरा भतीजा घऱ से कॉलेज गया था, बस स्टैंड पर उसके सीनियर्स ने अकेले उसे घेर लिया। मारपीट शुरू हो गई, लड़का एक और उसके सीनियर दर्जन भर। जब तक हौसला रहा लड़ा, लेकिन पस्त हो गया। थाना कॉलेज परिसर में ही है। पुलिस उसे ले गई, लेकिन भीतर जाते ही खेल हो गया, जब तक उसे होश आता, उसके खिलाफ लड़की से छेड़छाड़ का मुकदमा दर्ज हो चुका था। अब मामला एसीपी के दफ्तर में था, मैं था, मेरा भतीजा, वो लड़की, लड़की का कथित चाचा। मेरे भतीजे ने सबके सामने लड़की से पूछा-क्या मैंने कभी तुमसे बात की..? मैं तो तुम्हें जानता तक नहीं, मैंने कब छेड़ा तुम्हें। लड़की की बॉडी लैंग्वेज बदल गई, चाचा बोला-देखो जी, मेरी तो इज्जत का मामला है, मैं बात आगे बढ़ाना नहीं चाहता। एसीपी मुझसे बोला- मिश्रा जी, देखिए लड़के के करियर का मामला है, रिपोर्ट लिखी जा चुकी है, अच्छा है कि समझौता कर लीजिए। मैंने तल्खी भरे लफ्जों में कहा-प्रभू जरा अपने थानेदार से पूछिए, इतनी जल्दी क्या पड़ी थी रिपोर्ट लिखने की, दूसरे पक्ष से एक बार पूछ तो लेते। बातें बहुत हुईं, लेकिन उन बातों का न तब कोई फायदा था, न अब है।
वो दिन मेरे लिए काला दिन था। थाने में जिसकी रिपोर्ट लिखाई गई थी, वो पूरी कहानी झूठी थी, लड़की झूठी थी, लड़की का चाचा भी फर्जी था, उन लड़कों का कहीं कुछ पता नहीं था, जिन्होंने भतीजे को जानवरों की तरह पीटा था। लेकिन हमेशा सच्चाई का साथ देने वाला, डटकर सच बोलने वाला मैं उस दिन एक हारा हुआ अभिभावक था। बच्चे के करियर का सवाल था, दाग लगने का डर था, भरा पूरा भविष्य था। लिहाजा जो गलती उसने नहीं की थी, उसके लिए उससे माफीनामा लिखवाना पड़ा। उस वक्त कोई चारा मेरे पास नहीं था, मेरठ रहा होता तो कहानी कुछ और रहती, दिल्ली में तो नया नया ही आया था।

मैंने एसीपी से कहा कि इस थाने में पाप हुआ है, इसका प्रायश्चित आप तो नहीं कर सकते, लेकिन मैं इतना तो कर सकता हूं कि अब अपने बच्चे को इस कॉलेज में पढ़ने नहीं दूंगा। मैंने उसकी पढ़ाई छुड़वा दी। कॉलेज के प्रिंसिपल का फोन आया मेरे पास। माफी मांगी उन्होंने। बोले- मुझे सब पता चल चुका है। मैं सीनियर लड़कों और उस लड़की पर ऐक्शन लूंगा, जिसने आपके भतीजे को फंसाया था। मैंने विचार नहीं बदला-दो वजहें थीं, एक तो पूरे मामले के बाद मुझे उस कॉलेज से घिन आ रही थी। दूसरा ये डर था कि मेरे भतीजे का दिमाग कहीं बदला लेने की तरफ न चला जाए। बड़ी मुश्किल से रोका मैंने उसे, फिर मेरठ के इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला करवाया।
ये बात मैंने तब अपनी सहयोगी रिपोर्टर (वर्तमान में बीजेपी नेत्री) दीप्ति रावत भारद्वाज Deepti Rawat Bhardwaj को बताई। उसने कहा-ओ सर…आपको पहले बताना था, ये तो दिल्ली की लड़कियों को किसी फच्चे (फ्रेशर बच्चा) को फंसाने का पुराना तरीका है। ये कहानी मैंने ज्यादा लोगों को बताई नहीं, क्योंकि ये मेरी जिंदगी से जुड़ी काली कहानी थी, जहां मेरा सच हारा था, झूठ ठहाके लगाते हुए, चिढ़ाते हुए निकल गया था। हरियाणा की बस में कथित छेड़छाड़ और लड़कों की वीरांगनाओं के हाथों पिटाई के वीडियो की असली कहानी सामने आई तो बरबस बरसों पुरानी ये कहानी मुझे याद आ गई।

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