पुणे लोकमत समाचार के ऑफिस में लगा ताला
दस छोटे व पांच वरिष्ठ पत्रकार बेरोज़गारी की कगार पर
दो साल में ढाई करोड़ के घाटे में चल रहा था लोकमत समाचार
दो वर्ष पहले पुणे के जाने माने लोकमत समूह ने हिंदी के लोकमत समाचार पुणे एडिशन को शुरू किया था.इस अखबार की शुरुवात इतने गाजे बाजे के साथ हुई थी कि पिछले ४३ साल से पुणे से प्रकाशित हिंदी के नंबर १ अखबार के छोटे मोटे पत्रकारों को भी बड़ी बड़ी पोस्ट आनन् फानन में बाट दी गई थी.साथ ही मुंबई से प्रकाशित होने वाले एक राष्ट्रीय हिंदी अखबार के पुणे एडिशन में काम कर रहे छुटभैया पत्रकारों को भी बड़ी सेलरी का लालच देकर नियुक्त किया गया था.करीबी सूत्रों से मिली जानकारी के तहत लोकमत का हिंदी अखबार लोकमत समाचार पुणे एडिशन इन दो सालो में करीब ढाई करोड़ के घाटे में चल रहा था पर इस समाचार पत्र में काम रहे १५ लोगो को इस बात का गुमान भी नहीं था कि अचानक एक फ़ोन आयेगा और इतने बड़े समूह के अखबार के ऑफिस में ताला लग जायगा हिंदी प्रिंट मिडिया के पुराने जानकारों की माने तो पुणे में हिंदी अखबार चलाना कोई आसान काम नहीं है. क्योकि दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, और दबंग दुनिया, जैसे बड़े अखबार पुणे में सर्वे कर चुके और अपनी सर्वे रिपोर्ट मालिको को सोपते हुए उन्होंने कहा कि पुणे में हिंदी बेल्ड इतनी मज़बूत नहीं है और दुसरे पुणे में पिछले ४३ साल से प्रकाशित हो रहे हिंदी के नंबर १ अखबार को टक्कर देना कोई आसान काम नहीं है. परन्तु लोकमत समाचार से निकाले गए इन १५ पत्रकारों कि मुश्किलें बड गई है क्योकि यह सभी पत्रकार पुणे के एक बड़े अखबार से आए थे और इनमे से कुछ छुटभैय्या पत्रकार मुंबई से प्रकाशित एक दुसरे अखबार से आए थे लोकमत समाचार के अचानक बंद होने पर इन सभी पत्रकारों ने घर वापसी यानि जिस अखबार से आए थे उसमे जाने के लिए अपने अपने सोर्स लगाना शुरू कर दिए लेकिन लोकमत समाचार से निकाले गए इन लोगो को कोई लेने को तैयार नहीं है फिलहाल यह सभी छोटे बड़े पत्रकार बेरोज़गारी की कगार पर हैं
बेबाक राशिद सिद्दीकी