सुभाष चंद्रा ने जी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के पूरे स्टॉफ को बाहर का रास्ता दिखाया
पूरे देश में ऊंचे शिक्षा और प्रबंध संस्थानों में नैतिकता और मैनेजमेंट का ज्ञान देने वाले सुभाष चंद्रा, दो साल पहले ज़ी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ चैनल की टीम के सेलेक्शन में गच्चा खा गए। पूरे देश को प्रबंधन का ज्ञान देने वाले चंद्रा अपने एक रीजनल चैनल को मैनेज करने में नाकाम रहे। इस चैनल का रायता इतना फैल चुका है कि अब समेटे नहीं सिमट रहा। इससे ये भी खुलासा हुआ है कि इन्हें लोगों का चयन करना तक नहीं आता। नौबत यहां तक पहुंच गई कि दो साल में ही उन्होंने पूरे स्टाफ को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
दरअसल, चंद्रा के नेतृत्व वाली एचआर और एडीटोरियल टीम के तात्कालिक मुखियाओं ने गलत टीम का चयन कर लिया। चैनल में 17 साल से मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ का जिम्मा संभाल रहे राजेंद्र शर्मा के हटते ही नए चैनल हैड बने दिलीप तिवारी को आते ही सफाई अभियान चलाना पड़ा। सब कुछ बदल डालूंगा, की तर्ज पर साहब ने कथित तौर पर चैनल का पूरा स्टाफ ही साफ कर दिया। दिलीप साहब मार्च में नए हैड बने। उनके बाद अब तक मध्यप्रदेश के ब्यूरो चीफ अतुल विनोद पाठक, दिल्ली ब्यूरो चीफ अनुज शुक्ला, छत्तीसगढ़ के ब्यूरो चीफ रवि नामदेव, इनपुट हैड विनय पाठक, आउटपुट हैड रमेश चंद्रा, संवाददाता गौरव शर्मा, सीमा एम वर्मा, कृष्णपाल सिंह चौहान, अर्पित गुप्ता, इनपुट से अभिषेक भगत, आउटपुट से विक्रांत सहित 12 प्रमुख लोगों को चैनल छोड़ने पर मजबूर करने के बाद 26 स्ट्रिंगर्स को भी हटा दिया गया।
दरअसल, चैनल से पूरे स्टाफ को बेदखल करने की पटकथा राजेंद्र शर्मा का स्तीफा होते ही लिखी जा चुकी थी। खास बात ये है कि दिलीप तिवारी अपने एक खास रिपोर्टर आशू को भोपाल ब्यूरो हेड बनाने की प्लानिंग पहले ही कर चुके थे। ज़ी जैसे बड़े संस्थान में एचआर के होते हुए भी आशू बतौर नेशनल चैनल रिपोर्टर ही एमपीसीजी में अपनी सत्ता चलाने लगे थे। साहब का भोपाल तबादला हुआ नहीं था कि पूरे प्रदेश में ब्यूरो चीफ बनकर आने का फेसबुक पर ऐलान कर दिया। लगे हाथ सबको बदल कर अपनों को रखने का वादा भी साहब ने कर डाला। बतौर दिल्ली रिपोर्टर भोपाल सहित कई शहरों के स्ट्रिंगर्स और संवाददाताओं से इन्होंने रिज्यूम भी मंगा लिए। भाई ने अपने फेसबुक पर कमिंग सून लिखने के साथ नए चैनल हैड से नज़दीकी दिखाते फोटो भी शेयर करने शुरू कर दिए थे।
दरअसल ज़ीएमपीसीजी चैनल का रायता यूं न बिखरता, यदि चैनल हैड ने समझदारी से काम लिया होता। दिलीप तिवारी मध्यप्रदेश से अनजान थे। दिल्ली में अपनी नज़दीकी के बलबूते ब्यूरो चीफ बनने की तमन्ना रखने वाले आशू ने तिवारी के सामने वर्तमान स्टाफ के बारे में ऐसी कहानी रची कि भरे हुए तिवारी शुरूआत से ही सबको चोर और नाकारा कहने लगे थे। बड़बोले दिलीप अपने स्टाफ को रोजाना गाली देते देखे और सुने जाने लगे। खास बात ये है कि जो हटाए गए या स्तीफा देकर चले गए, उनका पक्ष जानने की एचआर ने कोशिश भी नहीं की। दिलीप और आशुतोष की कूटरचना में एचआर भी उलझ गया और वैसे भी ज़ी में एचआर नाम की कोई चीज़ बची नहीं है। जो इन दोनों ने एचआर को दिखाया, वही उसने देखा।
अंधेर नगरी चौपट राजा की तर्ज पर ज़ी एमपीसीजी में अब तक 80 फीसदी पुराना स्टाफ बाहर हो चुका है। जिस ब्यूरो चीफ के खिलाफ स्थानीय संवादाताओं ने प्रमाणों के साथ शिकायतें की थीं, वो अब भी चैनल में काम कर रहा है और इन दोनो के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले चैनल से बाहर हैं। एक और बात बड़ी हैरान करने वाली है कि इन दोनों के खिलाफ एचआर और सीईओ से शिकायत करने वालों की बड़ी दुर्गति हुई। जिनसे शिकायत की गई, उन्होंने जांच से पहले ही शिकायती मेल इन दोनो तक पंहुचा दी। दोनो को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया गया। जबकि बाकी असहाय और निराश होकर चैनल छोड़ते गए या निकाल दिए गए।
ये भी जांच का विषय है कि दिलीप और आशू के बीच ये अटूट बंधन किस बात का है। खिर क्यूं एक आशू के लिए दिलीप अब तक करीब 40 लोगों के पेट पर लात मार चुके हैं। से मैनेजमेंट इनकी बातों पर यकीन कर अपने द्वारा नियुक्त किए गए स्टाफ को निकालता चला जा रहा है। आखिर इन दो के अलावा चैनल का सारा स्टाफ कैसे चोर, बेईमान और नाकाबिल हो सकता है। क्या ज़ी एमपीसीजी अब तक ऐसे लोगों के हवाले था। अपने आकाओं के सामने नैतिकता और परफारमेंस की दुहाई देने वाले इन दो कारिंदों की असलियत क्या है, ये भी तो खोजा जाए।
एक टीवी पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित