रवीश कुमार: पत्रकारिता का हीरो’ कैसे आज चुप्पी साधकर बैठा है…

आदरणीय रवीश कुमार उर्फ़ पांडे जी,

प्रणाम,

‘काजू भुने हैं प्लेट में, व्हिस्की गिलास में

राम राज उतरा है विधायक निवास में’

अदम गोंडवीे ये लिखते वक्त शायद ‘विधायक उम्मीदवार’ लिखना भूल गए थे, लेकिन आपके बड़े भाई साहब ‘सौ टके वाला’ रामराज्य उतार लाए हैं। अपने निवास पर भी। दूसरों के निवास पर भी। और पता नहीं कहां-कहां।

रवीश जी, मैं यह पत्र आपकी तरह तल्ख़ी से नहीं लिख रहा हूं। शायद लिख भी नहीं पाउंगा। आज आपको अपनी लिखी सारी चिट्ठियों के बंडल को खोलकर एक-एक कर पढ़नी चाहिए। आपने किसी खत में लिखा था कि लोग ‘हर ख़बर के साथ दलाल और भड़वा कह रहे हैं’। ये संस्कृति किस परिवर्तन के साथ आई पता नहीं लेकिन बिहार कांग्रेस के कद्दावर नेता और आपके बड़े भाई ब्रजेश पांडे के मामले में आपकी चुप्पी इस संस्कृति का झंडा बुलंद कर रही है। लोगों ने आपकी मां के बारे में भी लिखा। गलत है। सरासर गलत है। आप खुद बता रहे थे कि आपकी ‘मां को नहीं पता कि प्राइम टाइम एंकर क्या होता है?’ आज उस दलित लड़की की मां को रात भर नींद नहीं आती है, जिसे ये भी पता नहीं कि ‘सेक्स रैकेट’ का असल मतलब क्या होता है?

आप भावुक भी हैं। जैसा कि आपने अपने किसी खत में लिखा था। भावुकता कुदरती उपहार है, इसे संभालकर रखिए। लेकिन ‘सेक्स रैकेट’ में आपके भाई और बिहार कांग्रेस के कद्दावर नेता ब्रजेश पांडे के शामिल होने की बातों से भी आप विचलित नहीं हुए हैं तो कई सवाल खड़े होंगे। हो भी रहे हैं।

रवीश कुमार जी, मैं यह पत्र बहुत उम्मीद से लिख रहा हूं। आपके जवाब का एक-एक शब्द मेरे जैसे पत्रकारिता के कमजोर छात्रों के साथ-साथ उन भावी पत्रकारों के लिए भी नज़ीर बनेगा, जो इन दिनों लाखों देकर पत्रकारिता पढ़ रहे हैं। बच्चों का मनोबल बढ़ेगा और आपकी तथाकथित साख भी बच जाएगी।

आपकी योग्यता नि:संदेह है। आज आप कुछ बच्चों के लिए हीरो हैं। उन बच्चों तक भी ये खबर पहुंचनी चाहिए कि ‘पत्रकारिता का हीरो’ कैसे तटस्थता के नाम पर चुप्पी साधकर किनारे कर लेता है। कुछ लोग अभी भी  पत्रकारिता को धर्म समझ कर करते हैं, ऐसे में आप जैसे लोग धर्म को कर्मकांड समझकर निभाने लगेंगे तो कैसे होगा ?

आप चाहें तो इस पत्र को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। आप टीआरपी मीटर से बाहर रहकर भी महत्व बताने वाले एंकर हैं और मैं इंडस्ट्री का गुमनाम सा पत्रकारिता का एक छात्र। एंकर भी रहा तो गुमनाम रहा आज प्रड्यूसर भी हूं तो गुमनाम हूं।

इंडिया हैबिटेट सेंटर में एक बार आपसे मुलाकात हुई थी। आपने मेरा नाम पूछा था। मैंने नाम बताया तो आप सुनकर मुस्कुरा कर रह गए थे। ‘शुक्रिया पांडे जी, सॉरी रवीश जी’। आपने पत्रकारिता के नाम पर जो कमाया, खुद को तटस्थ दिखाने के चक्कर में गंवा रहे हैं’। स्थिति यही रही तो पत्रकारिता के नए छात्र पत्रकार तो बनेंगे लेकिन रवीश कुमार नहीं बनना चाहेंगे।

पत्रकारिता का एक कमजोर छात्र

   आकाश वत्स

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