लगभग दो वर्षों तक नहीं हो सकेगी निर्भया के दोषियों को फांसी!
नई दिल्ली। निर्भया गैंगरेप में सुप्रीम कोर्ट ने सभी चार दोषियों को निचली और हाईकोर्ट से मिली फांसी की सजा को बरकरार रखकर लोगों के न्याय पर भरोसे को कायम रखा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सभी ने स्वागत किया है। 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती बस में हुए इस जघन्य अपराध के बाद पूरे देश में प्रदर्शन हुए थे और सभी ने अपराधियों को जल्द पकड़ने को सख्त सजा देने की सरकार और कानून से अपील की थी।
पिछले कुछ दशकों में यह पहला मामला था जिसके बाद पूरा देश इसके खिलाफ एकजुट हो गया था। लगभग चार वर्षों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का पटाक्षेप करते हुए सभी चार दोषियों की फांसी की सजा पर मुहर लगा दी। कोर्ट ने अपने आदेश में यहां तक कहा कि कानून महज कागजों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से सजा पर मुहर लगने के बाद भी इन दोषियों को लगभग दो वर्षों तक फांसी नहीं लग सकेगी। इसके पीछे कानून के जानकार कुछ खास वजह मानते हैं:-
दोषियों की तरफ से दायर की जा सकती है पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पेटिशन)
इस मामले में फांसी की सजा पाने वाले चारों दोषियों अक्षय, मुकेश, पवन और विनय की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पेटिशन फाइल की जा सकती है। कानूनन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के एक माह के अंदर इस अपील को फाइल करना होता है। इसके माध्यम से याचिकाकर्ता कोर्ट को अपने फैसले पर दोबारा विचार करने या फिर कुछ बिंदुओं पर दोबारा सोचने के बारे में कह सकता है। याचिकाकर्ता की इस अपील पर जज चैंबर में ही इसका निपटारा कर देते हैं। आमतौर पर रिव्यू पेटिशन के निर्धारण में ज्यादा समय नहीं लगता है।
क्यूरेटिव पेटिशन (उपचारात्मक याचिका)
क्यूरेटिव पेटिशन को भी एक तय समय में सुप्रीम कोर्ट में फाइल किया जा सकता है। लेकिन इसका अधिकार सभी को नहीं होता है। इस पर एक समय सीमा लागू होती है। जानकारों के मुताबिक इसको सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पेटिशन पर सुप्रीम कोर्ट को कोई सीनियर वकील की दोषियों के पक्ष में बात कर सकता है। आमतौर पर रिव्यू पेटिशन में काफी समय इसके तकनीकी पक्ष में ही लग जाता है।
गवर्नर के पास अपील
सुप्रीम कोर्ट के पास से सभी विकल्प पा लेने के बाद दोषी फांसी की सजा में तब्दीली के लिए गवर्नर के पास अपील फाइल कर सकते हैं। अनुच्छेद-161 के तहत राज्यपाल को दोषी की सजा को कम करने का विशेषाधिकार दिया गया है। याचिकाकर्ता सीधे या तो गवर्नर या फिर राष्ट्रपति और फिर गवर्नर के पास अपनी अपील को फाइल कर सकता है। नियमानुसार गवर्नर के पास की जाने वाली अपील को एक सप्ताह के अंदर निर्धारण किया जाना जरूरी होता है, लेकिन ऐसा कम ही हो पाता है।
राष्ट्रपति के पास अपील का अधिकार
दोषियों के पास फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने के लिए राष्ट्रपति के पास अपील करने का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत राष्ट्रपति को यह विशेषाधिकार दिया गया है। इस दया याचिका के तहत राष्ट्रपति से फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की गुहार लगाई जाती है। इस पर राष्ट्रपति गृह मंत्रालय से राय मांगते हैं जिसके बाद इसको मंजूर या खारिज कर दिया जाता है। कानून के जानकारों का कहना है कि यह सरकार और राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर है कि वह कितनी जल्दी इस दया याचिका पर सुनवाई करता है।
वर्षों तक निलंबित दया याचिका
पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि वर्षों तक भी दया याचिका पर सुनवाई नहीं हुई है। दया याचिका के निर्धारण में हो रही देरी की सूरत में दोषी की तरफ से एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जा सकता है और अपील की जा सकती है कि उनकी सजा को उम्रकैद में बदल दिया जाए। राष्ट्रपति से अपील खारिज होने के बाद नियमानुसार दोषी काे इसकी जानकारी दी जाती है और इसके दो सप्ताह के बाद ही फांसी की तारीख तय की जाती है और फांसी के लिए डेथ वारंट जारी किया जाता है।
कोर्ट में दोषियों की तरफ से पक्ष रखने वाले वकील एपी सिंह का कहना है कि राष्ट्रपति और गवर्नर के पास भी सुप्रीम कोर्ट में वापस अपील की जा सकती है। यदि कोर्ट इसे मंजूर कर लेता है तो उस पर फिर से सुनवाई होती है अन्यथा इसको खारिज कर दिया जाता है। उनके मुताबिक इसके बाद हाईकाेर्ट और गवर्नर के पास अपील करने का अधिकार दोषी को है। सिंह के मुताबिक संविधान की धारा 39 के मुताबिक जीवन को छीनने का अधिकार किसी मनुष्य के पास में नहीं है। उन्होंने साफ कहा है कि इस पूरे चरण में लगभग दो वर्ष का समय निकल जाएगा, लिहाजा दो वर्षों तक चारों दोषियों को सजा से दूर रखा जा सकता है।
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