ठगी से किताब
रामबहादुर राय
अब महसूस कर रहा हूं कि गलती मुझसे ही हुई। वह हो गई है। उसका नतीजा भी आ गयाहै। जिसकी आशंका मित्रों ने व्यक्त की थी, वह सही निकली है।
जिन्हें भी मालूम हुआ कि चंद्रशेखर के संसद में दिए गए भाषणों का पूरा संग्रह यशवंत सिंह को देनेजा रहा हूं, उन–उन ने मुझे मना किया। यह बात डेढ़ साल पुरानी है। वे लोग सही निकले। यशवंतसिंह के बारे में उनका अनुमान और अनुभव जैसा था, वैसा ही परिणाम आया है।
पहले यशवंत सिंह नामक जीव के बारे में जानें। वे कई दलों में घूमते रहे हैं। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्रीचंद्रशेखर के बारे में उनकी निष्ठा अडिग मानकर उन्हें देखता और बरतता था। मुझे क्या पता था किचंद्रशेखर भी उनके लिए राजनीतिक सौदे की वस्तु हैं। मैं इससे ही प्रभावित था कि एक राजनीतिककार्यकर्ता ने चंद्रशेखर न्यास बनाया है। उनकी स्मृति को लिख–पढ़कर संजोने में लगा है। यहीसोचकर उन्हें चंद्रशेखर जी का भाषण संग्रह सौंपा।
ऐसा नहीं था कि उन्हें मैंने बुलाया हो। वे समय लेकर ‘यथावत‘ के दफ्तर प्रवासी भवन आए। अपनेबनाए न्यास की जानकारी दी। जो कुछ काम किया है, उसके बारे में बताया। इससे पहले वे चंद्रशेखरपर संस्मरणों की एक पुस्तक निकाल चुके थे। जिसमें एक मेरा संस्मरण भी छपा है। वह पहला हीहै। इससे उनमें मेरा भरोसा बढ़ा। ऐसे बने संबंध का वास्ता देकर वे आए।
जिन्हें भी मालूम हुआ कि चंद्रशेखर के संसद में दिए गए भाषणों का पूरा संग्रह
यशवंत सिंह को देने जा रहा हूं, उन–उन ने मुझे मना किया। वे लोग सही निकले।
यशवंत सिंह के बारे में उनका अनुमान और अनुभव जैसा था, वैसा ही परिणाम आया है।
उन्हें किसी ने बताया था कि हमने चंद्रशेखर के भाषणों को करीब सालभर लगाकर निकलवाया है।उसमें मुख्य प्रेरणा एच.एन. शर्मा की थी। बताने की जरूरत नहीं है कि वे चंद्रशेखर के भरोसेमंदसहयोगी रहे हैं। दिल्ली में ‘चंद्रशेखर भवन‘ चलाते हैं। उन्होंने ही संसद के भाषणों को निकलवाने मेंजो खर्च हुआ वह उठाया। समय लगाया डॉ. रमाशंकर कुशवाहा ने। बड़ी लगन से उन्होंने संसद केपुस्तकालय से उन भाषणों को निकाला।
यशवंत सिंह को पूरा संग्रह इस अनौपचारिक करार के बाद दिया कि वे उसे विषयवार बनाकर लेआएंगे। फिर पुस्तक के प्रकाशन पर विचार होगा। उन्हें पूरा संग्रह प्रवासी भवन में सौंपा। उसके बादयशवंत सिंह गायब ही हो गए। उनकी ओर से कोई सूचना, सलाह और कामकाज के बारे में प्रगति कीजानकारी नहीं मिली।
अचानक एक दिन अखबारों में देखा कि चंद्रशेखर के संसद में दिए भाषणों पर पुस्तक छपी है, जिसका लोकार्पण मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने किया। सुना है कि अध्यक्षता हृदय नारायणदीक्षित ने की।
मुझे नहीं मालूम कि उन्हें यशवंत सिंह ने क्या बताया। पर इतना तो साफ है कि उन्हें अंधेरे में रखागया। यह बताया गया होगा कि यशवंत सिंह के न्यास की मेहनत से सामग्री एकत्र की गई होगी।
पुस्तक मेरे सामने है। इसे सौरभ राय ने भिजवाया है। इसे देखकर ठगा हुआ महसूस कर रहा हूं। इसीआधार पर मानता हूं कि यशवंत सिंह ने ठगी की है। सिर्फ चंद्रशेखर के साथ नहीं, बल्कि ईमानदारमुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के साथ और पढ़े–लिखे राजनीतिक नेता हृदय नारायण दीक्षित के साथभी।
संभवत: इस ठगी को जानकर ही उस समारोह में विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी नहीं आए।परमात्मा यशवंत सिंह को ऐसी ठगी करते रहने के लिए बुद्धि और बल दे।