‘हमें डराने के लिए है मानहानि का मुक़दमा’
न्यूज़ वेबसाइट ‘द वायर’ ने शनिवार को अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि बीजेपी प्रमुख अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी के कारोबार में एक साल के भीतर 16 हज़ार गुना बढ़ोतरी हुई है.
इस रिपोर्ट को लेकर विवाद बढ़ा तो जय शाह ने रिपोर्टर और द वायर के संपादक के ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़दमा दर्ज करा दिया.
न्यूज़ वेबसाइट ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन का कहना है कि वो सरकार की मानहानि का सामना करेंगे.
उन्होंने कहा कि उन्हें स्टोरी छापने के जोखिम का अंदाज़ा था. उन्होंने कहा कि बीजेपी प्रमुख अमित शाह के बेटे जय शाह के वकील ने पहले ही मुक़दमे की धमकी दी थी.
इस पूरे मसले पर बीबीसी संवाददाता कुलदीप मिश्र ने ‘द वायर’ के संपादकसिद्धार्थ वरदराजनसे बात की है. पढ़िए पूरे मामले पर उनका क्या कहना है-
सरकार परेशान करना चाहती है
हमारे पास मानहानि के कोई औपचारिक नोटिस या काग़ज़ नहीं आए हैं, लेकिन सोशल मीडिया के ज़रिए हमने देखा है. सरकार के रुख़ से साफ़ है कि वो ‘द वायर’ को परेशान करना चाहती है. यह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है. हम सरकार के उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लड़ेंगे.
अमित शाह के बेटे जय शाह के ख़िलाफ़ स्टोरी छपने के जोख़िम को लेकर हमारी आंखें खुली हुई थीं. उनके वकील को मैंने कई सवाल भेजे थे, जिनका उन्होंने जवाब भी दिया था. उनके वकील ने हमें पहले ही कह दिया था कि आप इन जवाबों के बावजूद जय शाह के ख़िलाफ़ स्टोरी छापेंगे तो आपके ख़िलाफ़ मुक़दमा किया जाएगा.
ये न सिर्फ़ ख़तरा था, बल्कि हमें धमकी दी गई थी. धमकी को अच्छी तरह समझते हुए हमने जनहित में इसे छापा. हमे लगा कि आधिकारिक रूप से जो डेटा हमने निकाला है, उसे लोगों के बीच जाना चाहिए.
सरकार बचाव में क्यों उतरी?
जय शाह के वकील ने कहा कि उनका क्लाइंट एक व्यक्ति है न कि सरकार से कोई संबंध है. ऐसे में पीयूष गोयल एक निजी आदमी को बचाने के लिए क्यों उतरे? पीयूष गोयल तो एक मंत्री हैं और सरकार के आदमी हैं.
भारत सरकार का एक मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और जय शाह का बचाव किया, इससे क्या साबित होता है. एक मंत्री ने सामने आकर मानहानि का मुक़दमा दर्ज करने की घोषणा की. अब तो यह आम बात हो गई है कि कोई सवाल उठाए तो मानहानि का मुक़दमा लगा दो.
हमने तो रिपोर्ट में ऐसे कोई इल्ज़ाम लगाए ही नहीं हैं, जिसके आधार पर पीयूष गोयल साहब कहें कि यह बदनाम करने की कोशिश की गई है.
यह कहने का कोई मतलब नहीं हैं कि हम शाह साहब को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें यह भी समझना चाहिए कि जिस रिपोर्टर ने यह स्टोरी की उसी ने 2011 में इकनॉमिक टाइम्स में रॉबर्ट वाड्रा कांड को उजागर किया था. अगर अमित शाह और बीजेपी के ख़िलाफ़ एजेंडा है, तो वो स्टोरी कैसे छपी थी?
जय शाह से जुड़े आंकड़े सार्वजनिक होना ज़रूरी था
ऐसी तमाम तरह की बेबुनियाद चीज़ें हैं और वे अपने बचाव में कुछ भी कह सकते हैं. हकीक़त तो यह है कि एक बहुत ही सीधी और सरल सी स्टोरी है, जिसमें आधिकारिक रूप से जो डेटा दिए गए हैं उनका अध्ययन कर पब्लिक के सामने रखा गया.
इसमें न तो कोई सियासत है और ना ही कोई इल्ज़ाम है, जिसकी प्रतिक्रिया में आप मानहानि की बात कर सकते हैं.
मीडिया रिपोर्ट को मानहानि से डराना प्रेस की आज़ादी पर हमला है. एक सीधी सरल रिपोर्ट पर मानहानि का मुक़दमा दर्ज़ कराने की मंशा और क्या हो सकती है. इन्होंने सिविल के साथ क्रिमिनल मानहानि का भी मुक़दमा किया है.
केस में कुछ ऐसे लोगों के भी नाम जोड़ दिए गए हैं जिनका पूरे वाक़ये से कोई ताल्लुक ही नहीं है.
ये पूरी तरह से मीडिया को डराने और धमकाने की कोशिश की जा रही है. यह हमला न केवल हम पर है बल्कि पूरे भारतीय मीडिया पर है.
इनके इरादे तो यही हैं कि बीजेपी के भीतर कोई झांके नहीं और ना ही कोई सवाल उठाए. इसी मंशा से मीडिया को मानहानि का डर दिखाया जा रहा है.