ई-चालान में पुलिस की मनमानी – निशाने पर पत्रकारों की गाड़ी –
जो पुलिस की ख़बर करता है, अब वहीं पुलिस से डरता है
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उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के खिलाफ जिस तरह से पुलिस प्रशासन द्वारा विगत वर्षों में फर्जी मुकदमे दर्ज हुए और पत्रकारों के उत्पीड़न के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं उससे लगता है उत्तर प्रदेश सरकार को सबसे ज्यादा खतरा पत्रकारों से ही है और आने वाले दिनों में किसी न किसी मामले में पत्रकारों पर पुलिस द्वारा दबाव बनाने की एक मुहिम से चालू की गई है।
इस मामले में अगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट को देखा जाए तो पत्रकारों के साथ हिंसा और पुलिस उत्पीड़न के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में ही है। उत्तर प्रदेश पत्रकारों के उत्पीड़न पर नंबर वन पर आ गया है और इसके पीछे पत्रकारों के निष्क्रिय हो चुके संगठन कहीं न कहीं एक बड़ी वजह है। पत्रकारों की मान्यता समिति जो उत्तर प्रदेश शासन और पत्रकारों के बीच समन्वय का काम करती थी उसका अस्तित्व खत्म हो गया है और यही वजह है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हर दूसरे दिन किसी ना किसी सम्मानित पत्रकार को पुलिस उत्पीड़न का शिकार होना पड़ रहा है, ये महज़ चंद खबरें हैं जो वायरल होने पर संज्ञान में आती हैं लेकिन ना जाने कितने ऐसे पत्रकार साथी हैं जो पुलिस उत्पीड़न और दुर्व्यवहार की इस घटना को सामने नहीं लाना चाहते और एक बुरा हादसा समझ कर भूल जाते हैं।
उत्तर प्रदेश के पत्रकारों को उत्पीड़न से बचाने और स्वाभिमान को बचाये रखने के लिए मार्गदर्शक, चिंतक पत्रकारों के बड़े समूह ने 27 पत्रकारों के एक टास्क फोर्स का गठन किया जो पत्रकारों को ऐसे उत्पीड़न से बचाएगा और उत्पीड़न करने वाले पुलिस दल पर कार्यवाही के लिए शासन से दबाव बनाएगा। पत्रकार हितों के लिए गठित टास्क फोर्स के सामने भी बड़ी चुनौती होगी क्योंकि उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के खिलाफ जिस तरह से पुलिस उत्पीड़न के मामले बढ़ते जा रहे हैं उससे लगता है इस सरकार को सबसे खतरा पत्रकारों से ही है और आने वाले दिनों में अपने को पुलिस के सामने पत्रकार बताना, दर्शाना एक बड़ा गुनाह होगा। पुलिस पत्रकार सुनने पर गाड़ी तो नहीं पलटा पाएगी लेकिन पलट कर आपकी गाड़ी के नंबर प्लेट की तस्वीर खींचकर कोई न कोई कारण दिखाकर आपको ई चालान थमा देगी, मीडिया घरानों की गिरती व्यावसायिक स्थितियों के चलते पत्रकारों के वेतन में कटौतियां हुईं है वहीं भारी भरकम चालान की धनराशि भरने में उसकी और भी कमर टूट जाएगी, ऐसे में पत्रकारों को पुलिस उत्पीड़न से बचाना टास्क फ़ोर्स की एक बड़ी ज़िम्मेदारी होगी।
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