नौकरी जनसंदेश की, वेतन भी जनसंदेश का और काम ‘ज्ञानवाणी का
जनसंदेश लखनऊ के सम्पादकीय विभाग के कर्मचारी नाम न छापने की शर्त पर मिली सूचना के अनुसार संस्थान के न्यूज एडिटर सत्येंद्र मिश्र अपनी पत्नी के नाम से एक मासिक पत्रिका ‘ज्ञानवाणीÓ निकालते हैं। ये कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन इसमें बात यह है कि इस मैग्जीन का पूरा काम जनसंदेश के कार्यालय में बैठकर किया जाता है और जनसंदेश की खबरों में हो रही गल्तियों पर ध्यान देने के बजाय सिर्फ अपने व्यक्गित कार्यों पर ज्यादा बल दिया जा रहा है। प्राप्त सूचना के अनुसार सत्येन्द्र मिश्र आजकल छुट्ïटी पर हैं। जब हमने यह जानने की कोशिश की कि आखिर ये छुट्ïटी किस बात की है तो पता चला कि वह अपने पत्रिका के सिलसिले में दिल्ली की तरफ निकले हुए हैं। कहने का अभिप्राय ये है कि नौकरी जनसंदेश की हो रही है, वेतन भी जनसंदेश से लिया जा रहा है और काफी हद तक जनसंदेश के लेखकों और जिले के रिपोर्टरों का सहयोग लिया जा रहा है और इस बात पर कहीं ध्यान नहीं दिया जा रहा कि हम जिस संस्थान की नौकरी कर रहे हैं उस संस्थान में छपने वाली खबरों पर भी कुछ विशेष ध्यान दे लें। खबरें गलत जाती हैं तो जाएं क्या फर्क पड़ता है। समाचार संपादक को तो लगता है कि बस पगार मिलती रहे और काम सुचारू तौर पर ज्ञानवाणी की चलता रहे। कोई विशेष बात नहीं है कि समाचार संपादक अपनी मैग्जीन चला रहे हैं। विशेष बस इतना है कि अपनी नौकरी का ख्याल न करते हुए अपने व्यक्तिगत कार्यों को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। क्या मालिकान इस तरफ एकदम आंख बंद किए हुए हैं। क्या समाचार संपादक का यह रवैया संस्थान हित में है। ये तमाम प्रश्न हैं जिनका जवाब संस्थान के बाकी कर्मचारी मन ही मन जानना चाह रहे हैं। मुझे लग रहा है कि इन सवालों का जवाब मालिकान को भी ढूंढ लेना चाहिए।