लेकिन ऐसा न कर आप पर शिकायत वापस लेने का दबाव दिया जाए और इस हद तक की आपको बंधक बनाकर इस्तीफे पर हस्ताक्षर की कोशिश की जाए, जब जानलेवा माहौल में इस्तीफा न ले पाएं तो ज़बरदस्ती ग़ैरकानूनी तरीके से TERMINATE कर दिया जाए।
अब जनता बताए, जांच कि दिशा क्या मानी जाएगी? जनता अपने विवेक के आधार पर जवाब दे।
नोट-जिस उच्च अधिकारी के खिलाफ मेरी शिकायत थी, जिसकी एवज़ में मुझे संस्थान से निकाला गया, उसके कारनामों के किस्से पुराने हैं, जी हां ध्यान रखिए दोस्तों न तो मेरी शिकायत पहली है और न ही मेरा TERMINATION पहला है।
सवाल बस एक ही है-ये हिम्मत आती कहां से है, कोई कैसे लड़कियों को अपनी जागीर समज सकता है?
तो लिखित में शिकायत दिए 50 घंटे से ज़्यादा का वक़्त बीत चुका है, FIR अभी तक नहीं हुई अंदाज़ा लगाएं, संस्थान की शक्तियों का।
मैनें POSH ACT के तहत कितनी हिम्मत के बाद शिकायत की होगी, 5 महीनें इस टार्चर को कैसे झेला होगा और अब ये हक़ीक़त ख़ुद जनता के सामने आ रही है। फिर भी मैं निराशावादी नहीं हूं, क़ानून का सम्मान करती हूं, निष्पक्ष जांच और इंसाफ का इंतज़ार रहेगा, आपके जवाब देने का आभार महोदय।
ख़ुलासे अभी और होने हैं, हिम्मत और सहयोग की दरकार रहेगी, सब कुछ दाव पर लगा कर POSH में शिकायत की थी..न्याय मेरा अधिकार बनता है।
निश्चित तौर पर सीएम योगी जी की कार्यशैली को मैनें करीब से देखा है मुझे पूरा भरोसा है कि मुझे न्याय ज़रूर मिलेगा। कोई अपने रसूख और कुर्सी की ताक़त दिखा कर मेरे या किसी भी महिला कर्मचारी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं कर सकता।
जो अधिकार देश के संविधान ने महिलाओं को दिए हैं, जो कानून महिला सुरक्षा से जुड़े देश की संसद ने महिलाओं को दिए हैं कोई उसे यूं ही कूड़े के ढेर या रद्दी में नहीं फेंक सकता, कतई नहीं, और कोई ऐसा करने का दुस्साहस करता है तो ये सहन नहीं किया जाना चाहिए। बेशक वो संस्थान कितना बड़ा ही क्यों न हो-देश की संसद और संविधान से बड़ा तो नहीं।
अगर कोई पीड़ित महिला पहले 112 की मदद से थाने पर पहुंच लिखित में शिकायत देती है, बुलाए जाने पर थाने जा कर हर सवाल का जवाब देती है और मांगे जाने पर हर E-MAIL उपलब्ध कराती है तो भी FIR दर्ज होने में इतनी देरी, क्या ये इशारा इंसाफ की तरह है?
मेरे लिए संदेश है इंतेज़ार कीजिए। क्या यही प्रक्रिया अपनाई जाती है हर मामले में?