बेहद जमीनी पत्रकार, अमर उजाला, हिंदुस्तान जैसे अखबारों के संपादक रहे दिनेश जुयाल जी का निधन
शुक्रवार सुबह अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी तो उन्हें श्री महंत अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यहां देर शाम उनका निधन हो गया
महेश शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल (65) का देहरादून के श्री महंत अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया. उनका पीजीआई चंडीगढ़ में इलाज चल रहा था. कुछ ही दिन पहले वह चंडीगढ़ से देहरादून आए थे. उन्हें ब्लड कैंसर था। जुयाल जी अमर उजाला और हिंदुस्तान में संपादक पद पर रह चुके थे।
बताया जा रहा है कि शुक्रवार सुबह अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी तो उन्हें श्री महंत अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यहां देर शाम उनका निधन हो गया. सरल व सौम्य स्वभाव वाले दिनेश जुयाल अमर उजाला व हिंदुस्तान जैसे अखबारों की कई यूनिटों में संपादक रहे थे.
जुयाल जी को मैं 1992 से जनता हूँ। वो मुझे बुढ़ऊ कहकर संबोधित करते थे। एक चुहलबाजी वाला संबोधन। मुझे भी अच्छा लगता था। फोन पर जब-तब बातें होती थी।
कानपुर में किसी बैंक लोन के भुगतान के बाद भी कुछ तकनीकी दिक्कत थी जिसके सिलसिले में वह आये थे। मैंने उनका काम करा दिया था। दिल्ली में होने के कारण उनसे भेंट न हो सकी। मुझे शुक्रिया कहना चाहते थे। देहरादून आने का न्योता देना नहीं भूलते थे। सीधे सज्जन इंसान और बेहतरीन संपादक थे।
बाँदा में क्राइम की किसी बड़ी घटना को कवर करने को अतुल भाई साहब (स्व.अतुल महेश्वरी) ने कानपुर भेजा था। तभी पहली मुलाकात हुई, फिर हम दोस्त बन गए। तो कानपुर से उन्हें बाँदा रवाना होना था। अमर उजाला कार्यालय के निकट सनी होटल में वह ठहरे थे।
कालपी रोड के ट्रैफिक के शोर से आजिज जुयाल जी सो नहीं पाए थे। सुबह बांदा भी जाना था। होटल के तौलिया को कान में लपेटे थे। अंग्रेजी के 9 की मुद्रा में लेटे थे। हमको आया देखकर उठ बैठे और बोले यार सो नहीं पाया। उनकी रिपोर्ट्स का मैं फैन था। काफी कुछ सीखा उनसे।
उनका निधन मेरी निजी क्षति है। महाप्रभु जगन्नाथ से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति दें। उनके जैसे इंसान कम ही धरती पर आते हैं।
दिनेश पाठक
मुझे भर-भर सहयोग देने वाले बड़े भाई तुल्य दिनेश जुयाल जी नहीं रहे। बेहद जमीनी पत्रकार, अमर उजाला, हिंदुस्तान जैसे अखबारों के संपादक रहे जुयाल जी बरेली अमर उजाला से रिटायर होकर देहरादून में रह रहे थे। खूब सक्रिय थे। खूब लिखते, बोलते, पढ़ते और पढ़ाते थे। लखनऊ में वे मेरे समाचार संपादक रहे। कालांतर में जब उन्होंने देहरादून हिंदुस्तान के संपादक की कुर्सी छोड़ी तो संस्थान ने मुझे उनका दायित्व सौंपा। वहाँ भी उनका पूरा सहयोग मिला। यह तस्वीर देहरादून ऑफिस की ही है। बाद में हमारी मुलाकात कानपुर में हुई। वे अमर उजाला और मैं हिंदुस्तान का स्थानीय संपादक था। हम जब भी मिलते, फोन पर बात करते, उनमें गजब की ऊर्जा महसूस होती। भाभी का चेहरा बार-बार सामने आ रहा है। अभी उनकी ऐसी उम्र भी नहीं थी। हाँ, सितम्बर में कैंसर जरूर डिटेक्ट हुआ था। आज सुबह तबीयत खराब हुई। महंत इंद्रेश अस्पताल में दाखिल हुए और शाम को अनंत यात्रा पर निकल पड़े। नमन सर।