ये कड़वा सच है कि अखबारों के सिसकने और मर जाने से अखबार कर्मियो की पेशेवर ज़िन्दगी सिसकने लगती है, नहीं रहे पत्रकार मोहित सिंह
मोहित सिंह नब्बे के दशक में उभरते हुए कलमकार थे। सन 2000 के दशक तक वो अपनी कलम नवीसी के पेशे में काफी सक्रिय रहे। अपने जमाने के लीडिंग अखबार “कुबेर टाइम्स” से पत्रकारिता जगत में उनकी ठीक-ठाक पहचान बन गई थी। “स्वतंत्रता भारत” और अन्य अखबारों में भी उन्होंने काम किया। अपने ज़माने के चर्चित और खूब पढ़े जाने वाले इवनिंगर पेपर “समर शिखर” में मोहित ब्यूरो चीफ थे।
लखनऊ के पत्रकार मोहित सिंह नहीं रहे। बीते शुक्रवार उनका देहांत हुआ और आज भैंसाकुंड में उनका अंतिम संस्कार हो गया। उनके जाने की उम्र नहीं थी, लेकिन चले गए। जाते-जाते पुराने दौर की पत्रकारिता की यादें और अपनी ख़बरों की कतरनों की संपत्ति छोड़ गए।
पत्रकार की सबसे बड़ी कमाई, पहचान और सम्पत्ति उसकी लिखी खबरें होती हैं। वो अपनी खबरों, व्यवहार और पत्रकारिता के अनुभव से याद किया जाता है। उसकी यादों में उसकी खबरें होती हैं। ये जरूरी नहीं कि हर कोई सदाबहार रहे। पत्रकार का भी एक ज़माना होता है।
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