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मीडिया पर प्रतिबंधात्मक आदेश लगाने से बचें अदालतें: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जोर देकर कहा कि अदालतों को मीडिया संगठनों पर प्रतिबंध लगाने वाले आदेश(gag orders) जारी करने से बचना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जोर देकर कहा कि अदालतों को मीडिया संगठनों पर प्रतिबंध लगाने वाले आदेश (gag orders) जारी करने से बचना चाहिए। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी न्यायिक फैसले की निष्पक्ष आलोचना को अदालत की अवमानना नहीं माना जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट का यह बयान दिल्ली हाई कोर्ट के एक निर्देश के बाद आया, जिसमें विकिपीडिया को आदेश दिया गया था कि वह लंबित ₹2 करोड़ के मानहानि मामले के संबंध में 36 घंटे के भीतर एक पेज हटा दे। यह मामला न्यूज एजेंसी ANI द्वारा प्लेटफॉर्म के खिलाफ दायर किया गया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जल भुयान की खंडपीठ ने कहा, “अदालतों को सोशल मीडिया पर उनके आदेशों के खिलाफ की गई कुछ टिप्पणियों को लेकर संवेदनशील क्यों होना चाहिए?”

पीठ ने टिप्पणी की, “अदालतें प्रतिबंधात्मक आदेश जारी नहीं कर सकतीं। किसी के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है, नोटिस जारी होगा और दूसरा पक्ष अवमानना को समाप्त करने का विकल्प चुन सकता है। लेकिन सिर्फ इसलिए किसी को कुछ हटाने के लिए कहना कि अदालत ने जो कहा या किया उसकी आलोचना हो रही है, यह ठीक नहीं है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह “विडंबना” है कि एक मीडिया संस्था ANI, जो स्वयं सूचनाएं प्रसारित करती है, किसी अन्य प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट का यह दखल तब आया जब विकिपीडिया ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें प्लेटफॉर्म को ANI द्वारा दायर मानहानि मामले पर चर्चा करने वाले पेज को हटाने का निर्देश दिया गया था।

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