चुनाव को सकारात्मक आंदोलन का जरिया बनाइये…
प्रभात रंजन दीन
पत्रकार साथियो..! राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के चुनाव में वोट पाने की जद्दोजहद, जुगाड़, जातीय-गुटीय-वर्गीय-धर्मीय खेमेबंदी के माहौल में एक कोशिश हुई पत्रकारीय साख और अस्मिता के गिरते स्तर को बचाने का उपाय तलाशने की. हिंदी संस्थान के प्रेमचंद सभागार में बृहस्पतिवार 12 अप्रैल को एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. इस आयोजन में मैंने ‘चौथी दुनिया’ साप्ताहिक समाचार पत्र का बैनर सामने इसलिए रखा कि मैं उसी अखबार में काम करता हूं और दूसरे कि यह सेमिनार विशुद्ध रूप से अखबारी और पत्रकारीय विचारधारा पर केंद्रित हो, उसका स्वरूप किसी भी कीमत पर राजनीतिक और चुनावी न हो. …और ऐसा ही हुआ. दो बजे से शुरू हुआ सेमिनार साढ़े पांच बजे शाम तक चलता रहा. पत्रकार समुदाय के साथियों ने पत्रकारिता विधा की गिरती साख और प्रतिष्ठा को लेकर चिंता जताई, उपाय बताए और यह भूख जाहिर की कि ऐसे सेमिनार का लखनऊ में अकाल है, लिहाजा इसे आगे भी जारी रखा जाए. साथियों के समक्ष यह निश्चय भी किया कि ऐसी विचार गोष्ठियों का सिलसिला आगे भी चलता रहेगा. सेमिनार के आयोजन पर आने वाला खर्च मुझे मिलने वाले वेतन से निकल आएगा, इसलिए मेरे रिटायर होने तक के लिए इसकी चिंता नहीं…
खैर, सेमिनार की खास बात रही कि विचार के केंद्र में चुनाव नहीं बल्कि पत्रकारिता के सम्मान की स्थापना का भाव चर्चा के केंद्र में रहा. मैं व्यक्तिगत तौर पर अपने सारे पत्रकार साथियों के प्रति आभार जताता हूं कि वे आए, अपने विचार व्यक्त किए और सबके विचार सुने. मैं अपने समय-काल के साथियों के साथ-साथ इस विधा में शरीक हुए नए और युवा पत्रकार साथियों के प्रति अधिक आभारी हूं, क्योंकि लोग कहते हैं कि युवाओं में सुनने का धैर्य नहीं होता, लेकिन उन्होंने न केवल बोलने में हिस्सा लिया, बल्कि पूरे समय बैठकर बड़े धैर्य से सबको सुना और आखिर तक डटे रहे. समय रहता तो कुछ और साथियों को सुनने का अवसर मिलता, लेकिन कोई बात नहीं, उन्हें भी जल्दी ही सुनने का मौका मिलेगा… सेमिनार कक्ष पूरा भरा था. बहुत देर बाद यह खयाल आया कि उपस्थित साथियों का हस्ताक्षर लिया जाना चाहिए था.
अपने साथी अंकित गोयल को कहा, उन्होंने उपस्थित साथियों से नोटबुक पर नाम और नंबर लिए. मेरे सामने वह नोटबुक है, उसमें 148 नाम दर्ज हैं. नोटबुक में सभाध्यक्ष, मुख्य अतिथि, मेरा और आयोजन में साथ देने वाले साथियों को मिला कर करीब 50 लोगों (कुछ लोग जो बीच में चले गए थे) के नाम दर्ज नहीं हैं. यह संख्या अपनी रचनात्मकता का संदेश देती है. किसी सभा में जुटने वाली भारी भीड़ कभी भी रचनात्मक और उत्पादक नहीं होती है. इस दृष्टिकोण से देखें तो एक उम्मीद दिखाई देती है कि पत्रकार समुदाय देश के सम्मानजनक समुदाय में खुद को एक बार फिर से शरीक करने के अपने अधिकार-आंदोलन को निर्णायक शक्ल तक पहुंचा सकता है. सेमिनार में उपस्थित सारे साथियों का नाम तो नहीं लिख सकता, और कुछ लोगों के नाम लिख कर मैं भेदभाव नहीं कर सकता. मैं समवेत सारे साथियों के प्रति एक बार फिर आभार जताता हूं… सेमिनार में मौजूद हुईं महिला पत्रकार साथियों के प्रति भी मैं हार्दिक सम्मान और आभार व्यक्त करता हूं. सेमिनार की यह वीडियो क्लिपिंग जो मैं फेसबुक पर आपके लिए अपलोड कर रहा हूं, यह भी महिला पत्रकार साथियों के मोबाइल से मिली है… इसे आप देखें और अगले सेमिनार के लिए मन बनाएं, ताकि हम एक निर्णायक आंदोलन के लिए खुद को तैयार कर सकें…
आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं, प्रभात रंजन दीन
जो आग पत्रकारिता की पहचान होनी चाहिए वह अभी पूरी तरह बुझी नही है: सुशील शुक्ल
वरिष्ठ संपादक प्रभात रंजन दीन ने कल लखनऊ मे राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति के आसन्न चुनाव के संदर्भ मे पत्रकारीय अस्मिता के मौजूं सवाल पर हिन्दी संस्थान के प्रेमचंद सभागार मे संगोष्ठी का आयोजन किया । संगोष्ठी मे बड़ी संख्या मे पत्रकार मौजूद थे । उनके साथ मुझे भी इसमे शामिल होने का मौका मिला । वहां तमाम वक्ताओं को सुनकर यह भ्रांत धारणा टूटी कि आज के पत्रकार समुदाय मे विवेक की शुचिता का लोप हो गया है । खासकर युवा पत्रकारों को सुनकर लगा कि जो आग पत्रकारिता की पहचान होनी चाहिए वह अभी पूरी तरह बुझी नही है ,भले ही उसपर ऐसी राख की मोटी परत जम गई है जिसका पत्रकारिता कर्म तथा एथिक्स से दूर दूर तक कोई नाता नही है । प्रभात जी को बथाई कि उन्होंने बची हुई चिंगारियों को राख कुरेद कर भड़कने का अवसर व मंच प्रदान किया । प्रभात जी मे वह जज्बा और हौसला है जो इन चिंगारियों को शोला बना सकता है । अच्छी बात यह है कि उनके साथ इस मुहिम मे ऐसे तमाम पत्रकार जुड़ने को तत्पर हैं जो पत्रकारीय अस्मिता की अधोमुखी गति से झुब्ध और व्यथित हैं और इसकी दिशा को मोड़कर ऊर्ध्वमुखी बनाने के हामी हैं ।
मुझे विश्वास है कि प्रभात जी ने पत्रकारों के विवेक को जगाने तथा एथिक्स आधारित आचरण के बूते पत्रकारों के सम्मान और उनकी अहमियत को सत्ता प्रतिष्ठान के दर्प से ऊपर स्थापित करने का जो बीड़ा उठाया है, उस काम को वह निरंतर आगे बढ़ाते रहेंगे और इसमे उन्हें सही सोच वाले सभी साथियों का सहयोग प्राप्त होगा ।
उन्हें मेरी अशेष शुभकामनायें ।