मोदी सरकार की घोषित नीति! अडानी के खिलाफ जो बोलेगा उसकी खैर नहीं
ऐसा भी नहीं है कि अडानी के तेजी से बढ़ते साम्राज्य के बारे में भारत के समाचार-पत्रों में खबरें नहीं छपीं। लेकिन उन खबरों और खोजी पत्रकारों की रिपोर्टों को छापने वाले समाचार-पत्र कभी भी स्थापित खबरिया चैनल या मीडिया घराने नहीं थे। इकॉनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली के पूर्व संपादक परंजय गुहा ठाकुरता की अडानी साम्राज्य पर खोजी पत्रिकारिता ने उन्हें समूह से इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया था।
रविंद्र पटवाल (सभार……….)
मोदी सरकार की ताजातरीन शिकार लगातार अडानी पर निशाना साधने वाली तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा बनी हैं। इससे पहले आप सांसद संजय सिंह को भी जांच एजेंसियों ने शराब-एक्साइज मामले में हिरासत में ले रखा है, वो भी अडानी मुद्दे पर संसद के भीतर और बाहर अपने बयानों को इसकी मुख्य बजह बता रहे हैं। और इस मामले को प्रमुखता से उठाने वाली कांग्रेस रही है, जिसके नेता राहुल गांधी के बारे में तो यही कहा जाता है कि अडानी मुद्दे को संसद के भीतर प्रमुखता से उठाने के कारण ही गुजरात कोर्ट में बंद पड़े मामले को खोलकर उनकी संसद सदस्यता छीनने की कोशिश की गई।
यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि अडानी और पीएम मोदी का कैरियर लगभग साथ-साथ शुरू हुआ। अडानी का ग्राफ 2000 से 2014 तक काफी तेजी से बढ़ा, लेकिन 2014 के बाद तो यह रफ्तार इतनी तेज गति से बढ़ी है कि देश के पारंपरिक कॉर्पोरेट घराने ही नहीं खुद अंबानी समूह की हैसियत उनकी तुलना में आधी रह गई थी, और अडानी भारत और एशिया ही नहीं दुनिया के सबसे धनी कॉर्पोरेट समूह की सूची में तीसरे स्थान पर पहुंच चुके थे। कई विशेषज्ञों का आकलन था कि यदि यही रफ्तार रही तो भारत का तो जो होना है वो होता रहेगा, लेकिन अडानी जरूर एलन मस्क को पछाड़ते हुए विश्व के सबसे धनी व्यक्ति बन सकते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि अडानी के तेजी से बढ़ते साम्राज्य के बारे में भारत के समाचार-पत्रों में खबरें नहीं छपीं। लेकिन उन खबरों और खोजी पत्रकारों की रिपोर्टों को छापने वाले समाचार-पत्र कभी भी स्थापित खबरिया चैनल या मीडिया घराने नहीं थे। इकॉनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली के पूर्व संपादक परंजय गुहा ठाकुरता की अडानी साम्राज्य पर खोजी पत्रिकारिता ने उन्हें समूह से इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया था।
ठाकुरता के खिलाफ करीब 5 विभिन्न स्थानों पर मुकदमे ठोके गये, और मीडिया में अडानी पर बोलने या लिखने पर अदालत से गैग आर्डर लगा दिया गया। वो तो अमेरिकी शार्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग को लगा कि भारत में भी एक कंपनी पर दांव खेला जा सकता है, जिसकी अभूतपूर्व तेजी तो सबको दिखाई देती है, लेकिन कंपनी का आधार बेहद कमजोर नींव पर टिका है।
हिंडनबर्ग ने दांव लगाया और अडानी समूह पर आरोप लगाते हुए शार्ट सेलिंग में अच्छा-खासा मुनाफा कमाया। जनवरी 2023 से अभी तक अडानी समूह ने कंपनी के मुल्यांकन में भारी कमी की क्षतिपूर्ति पर खुद को केंद्रित रखा, और विदेशी निवेशकों के पास रखे बांड को छुड़ाने के लिए बड़ी कीमत चुकाई है। लेकिन हाल ही में उसे धारावी रि-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का काम अवार्ड हुआ है, जिसे 2019 में संयुक्त अरब अमीरात की एक शाही परिवार समर्थित कंपनी को अवार्ड किया जा चुका था।
यह मुद्दा अभी सुर्ख़ियों में आना बाकी है, लेकिन तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे द्वारा संसद के भीतर पैसे के बदले सवाल पूछने का गंभीर आरोप लगाया है, उसके पीछे भी अडानी स्टोरी ही निकलकर आ रही है। अब खबर यह आ रही है कि मुंबई रियल एस्टेट दिग्गज हीरानंदानी भी धारावी रि-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट पर निगाहें गड़ाए हुए थे, जिसे अडानी (रियल एस्टेट में अनुभव-शून्य) को अवार्ड कर दिया गया। इस प्रोजेक्ट के बारे में भारतीय मीडिया ने कोई सुगबुगाहट अभी तक नहीं दिखाई है।
पिछले एक सप्ताह से अडानी समूह से संबंधित 3 मामले सामने आये हैं। एक है इंडोनेशिया से आयातित कोयले में ओवर-इन्वायसिंग कर 12,000 करोड़ रुपये भारत में बिजली उपभाक्ताओं से वसूलने का, दूसरा है मुंबई एअरपोर्ट की खरीद मामले में जांच और तीसरा सांसद महुआ मोइत्रा विवाद के पीछे धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट को लेकर दो रियल एस्टेट की दुनिया में प्रतिद्वंदिता।
जहां तक फाइनेंशियल टाइम्स द्वारा इंडोनेशिया से कोयले के आयात में बड़े पैमाने पर फर्जीवाडा करने की खबर है, तो कोयले एवं आयातित मशीनरी में ओवर-इनवाइसिंग की खबरें भारतीय मीडिया में कुछ वर्ष पहले आ चुकी थीं, जिस पर मोदी सरकार ने तो ध्यान ही नहीं दिया, लेकिन विपक्षी पार्टियों को भी तब तक इसकी कोई परवाह नहीं थी। लेकिन हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से जो धमाका हुआ, उसके बाद से ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाले अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने लगातार अडानी समूह के कारोबार को लेकर समय-समय पर अपनी एक्सक्लूसिव रिपोर्ट छापी हैं, जिससे भारत के भीतर भी लगातार छोटी-मोटी हलचलें मचती रहती हैं।
इसके बावजूद मोदी सरकार के मौन, आईटी सेल की मजबूती से अडानी के पक्ष में चलाए जाने वाले अभियान और गोदी मीडिया में अडानी के मालिकाने से घरेलू बाजार में अडानी समूह के लिए सेंटिमेंट सकारात्मकता लिए हुए है। यहां पर यह भी रेखांकित करने की जरूरत है कि सेबी की जांच रिपोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय की लंबित सुनवाई के बीच जहां विदेशी निवेशकों ने अडानी समूह से अपने हाथ खींचे हैं, वहीं इसकी भरपाई देश के छोटे-छोटे नए निवेशकों द्वारा पूर्ति की जा रही है। यह तो समय ही बतायेगा कि अपने निवेश से इन नवोदित शेयरधारकों की किस्मत खुलती है या मायूसी हाथ लगती है।
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट में क्या निकलकर आ रहा है?
अडानी समूह द्वारा कथित तौर पर कोयला आयात की कीमतों में हेरफेर कैसे किया जा रहा था और समूह का चांग चुंगलिंग से क्या संबंध है, के बारे में एफटी ने विस्तार से अपने लेख में बताया है कि किस प्रकार से अडानी समूह ने बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर अरबों डॉलर का कोयला आयात किया था। इस रिपोर्ट में 2019 और 2021 के बीच के 32 महीनों के दौरान इंडोनेशिया से भारत के बीच 30 शिपमेंट की जांच को आधार बनाया गया है। इसमें कहा गया है कि आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि उपभोक्ताओं और व्यवसायों को बिजली के लिए लंबे समय से ज्यादा भुगतान के आरोप सही हैं। उधर अडानी ग्रुप ने इन आरोपों से इनकार किया है।
ये आरोप अडानी समूह के एकीकृत संसाधन प्रबंधन (आईआरएम) व्यवसाय से संबंधित हैं। मार्च 2023 में एक क्रेडिट रिपोर्ट ने अपने आंकड़े जारी करते हुए अडानी समूह को निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) दोनों क्षेत्र में अपने ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए देश में कोयले के सबसे बड़े आयातक के रूप में वर्गीकृत किया है।
एफटी के मुताबिक, शिपमेंट की जांच में पता चलता है कि निर्यात घोषणाओं में जितनी कीमत का उल्लेख किया गया था, उसकी तुलना में आयात रिकॉर्ड में कहीं अधिक का उल्लेख मिलता है। उदाहरण के लिए, थोक मालवाहक डीएल एकेसिया (DL Acacia) द्वारा जनवरी 2019 में 74,820 टन कोयले का परिवहन किया। निर्यात के सी रिकॉर्ड में कोयले की कीमत 19 लाख डॉलर एवं शिपिंग और बीमा के लिए 42,000 डॉलर घोषित की गई है।
लेकिन भारत में गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह (अडानी समूह द्वारा संचालित) पर पहुंचने पर घोषित आयात मूल्य 43 लाख डॉलर तक बढ़ा दिया गया था। लेकिन यह मामला कोई एक शिपमेंट तक सीमित नहीं है। इंडोनेशियाई घोषणा में इस अवधि के दौरान 30 शिपमेंट का उल्लेख है, जिसमें कुल मिलाकर 31 लाख टन कोयले का परिवहन किया गया, जिसकी कीमत 13.9 करोड़ डॉलर है, जिसमें शिपिंग और बीमा लागत के लिए अलग से 31 लाख डॉलर को मिला दें तो कुल लागत 14.2 करोड़ डॉलर होता है। जबकि भारत में कस्टम अधिकारियों के सामने कोयले की कीमत 21.5 करोड़ डॉलर घोषित की जाती है। इस प्रकार 7.3 करोड़ डॉलर का मुनाफा सिर्फ कोयले की शिपिंग के दौरान बिलिंग में बदलाव के जरिये हासिल कर लिया गया।
कोयला व्यापार के बारे में माना जाता है कि यह बेहद प्रतिस्पर्धी बाजार है, जिसमें बेहद कम मार्जिन के साथ बड़े व्यावसायिक सौदे किये जाते हैं। इसके साथ ही आवश्यक वस्तु की सूची में होने के कारण इसके लिए कड़े सरकारी नियम भी लागू होते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि खनन कंपनी अपने उत्पाद का मूल्य निर्धारण करते वक्त इन कारकों को ध्यान में रखें, जिसमें कोयले के व्यापारियों के लिए कुछ मार्जिन हासिल कर पाना संभव हो सके। इस बारे में एफटी को इंडोनेशियाई व्यापार के एक विशेषज्ञ ने बताया कि बाजार मूल्य से कुछ डॉलर से ज्यादा की इसमें गुंजाइश नहीं रहती है। ऐसे में बड़ा सवाल खड़ा होता है कि फिर किस प्रक्रिया के तहत यह संभव हो सका?
एफटी की जांच में तीन “बिचौलियों” का पता चलता है जो ऑफशोर बिजनेस चलाते हैं, जिन्होंने अडानी समूह को कोयले की आपूर्ति की। यह भी कहा जाता है कि इन्होंने “बड़ी मात्रा में” पैसा बनाया। इनमें ताइपे में हाय लिंगोस, दुबई में टॉरस कमोडिटीज जनरल ट्रेडिंग और सिंगापुर में पैन एशियन ट्रेडलिंक शामिल हैं।
जुलाई 2021 के आयात डेटा से पता चलता है कि अडानी समूह ने कोयले की आपूर्ति के लिए इन ऑफशोर कंपनियों को कुल 4.8 बिलियन डॉलर का भुगतान किया था, जो बाजार कीमतों की तुलना में काफी अधिक था। इसी तरह बाद के दौर में देखें तो सितंबर 2021 से जुलाई 2023 के बीच अडानी एंटरप्राइजेज द्वारा 2,000 शिपमेंट में करीब 7.3 करोड़ टन कोयले का आयात किया गया है।
इस 7.3 करोड़ टन कोयले के आयात में से, 4.22 करोड़ टन की आपूर्ति इसके स्वयं के परिचालन द्वारा 130 डॉलर प्रति टन की औसत (घोषित) कीमत पर किया गया है, जबकि तीन बिचौलियों द्वारा लाये गये कोयले की औसत कीमत 155 डॉलर प्रति टन थी। इनके अलावा हाई लिंगोज़ से आयात 149 डॉलर प्रति टन, टॉरस से 154.43 डॉलर एवं पैन एशिया से 168.58 डॉलर प्रति टन कीमत पर खरीद की गई।
एफटी ने अपनी जांच में पाया है कि हाय लिंगोस का स्वामित्व ताइवानी व्यवसायी चांग चुंगलिंग के पास है। ऐसा माना जाता है कि इस व्यक्ति का नाम 2013 से लेकर 2017 के बीच गुप्त रूप से अडानी समूह की तीन सूचीबद्ध कंपनियों में सबसे बड़े शेयरधारकों में से एक था। इसके अलावा, पैन एशिया ट्रेडलिंक जिसे आयातित कोयले में सबसे अधिक कीमत अदा की गई है, के पास भारत के भीतर अडानी पावर को छोड़कर कोई अन्य ग्राहक नहीं था।
जाहिर सी बात है, यह मुद्दा मीडिया की सुर्ख़ियों में एक-दो दिन के लिए खड़ा हुआ, फिर शांत हो गया है। लेकिन आज कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस में अडानी समूह के कोयले के आयात में 12,000 करोड़ रुपये के कथित घपले की बात उठाकर नए सिरे से मुद्दा गर्मा दिया है।
राहुल गांधी ने अपने बयान में साफ़ कहा है कि अब अडानी समूह से 20,000+12,000= 32,000 करोड़ रुपये के स्रोत के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने की मांग सरकार से की जाती है। उन्होंने इशारे-इशारे में सवाल खड़ा किया है कि ये 32,000 करोड़ रुपये किसके हैं, और किसे बचाने के लिए अडानी समूह के खातों की जांच नहीं की जा रही है।
मुंबई इंटरनेशनल एअरपोर्ट मामला
13 अक्टूबर के दिन अडानी समूह ने सेबी को सूचित किया था कि कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के द्वारा उनके मुंबई इंटरनेशनल एअरपोर्ट लिमिटेड एवं नवी मुंबई इंटरनेशनल एअरपोर्ट लिमिटेड पर जांच की जा रही है। यह जांच 2017-18 से 2021-22 के बीच की अवधि के लिए है, जबकि वर्ष 2021-22 वित्त वर्ष में कंपनी द्वारा जीवीके से एअरपोर्ट अधिग्रहित किया जा चुका था।
बता दें कि जुलाई 2021 में ग्रुप ने मुंबई इंटरनेशनल एअरपोर्ट के 74% हिस्से का अधिग्रहण हासिल कर लिया था। इसमें जीवीके समूह की 50.5% और एसीएसए की 23.5% हिस्सेदारी को अडानी समूह ने खरीद लिया था। इसके साथ ही नवी मुंबई एअरपोर्ट का मालिकाना भी अडानी समूह के हिस्से में आ चुका है, जिसके दिसंबर 2024 तक परिचालन में आने की खबर है। देश में इस समय अडानी समूह के पास 7 हवाई अड्डों के स्वामित्व और संचालन का अधिकार हासिल है, जिसमें लखनऊ, मंगलुरु, अहमदाबाद, जयपुर, गुवाहाटी और थिरुअनन्तपुरम एअरपोर्ट शामिल हैं। अगले 50 वर्षों तक समूह के पास इन एयरपोर्ट्स के संचालन, प्रबंधन और विकसित करने का कार्यभार है।
नीति आयोग और आर्थिक मामलों के विभाग ने एअरपोर्ट के निजीकरण की प्रक्रिया के दौरान कहा था कि ये सभी एअरपोर्ट बेहद ज्यादा पूंजीगत परियोजना का हिस्सा हैं, इसलिए किसी एक बोली लगाने वाले को 2 से अधिक एअरपोर्ट को अवार्ड न किया जाये। इसके अलावा नीति आयोग ने अलग से चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि यदि बोली लगाने वाले के पास पर्याप्त तकनीकी क्षमता नहीं होती है, तो प्रोजेक्ट ही खतरे में पड़ सकता है और सेवाओं की गुणवता पर खासा प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए सरकार वचनबद्ध है।
बता दें कि दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के नवीनीकरण का काम क्रमशः जीएमआर एवं जीवीके ग्रुप को 2008 में हासिल हुआ था। दोनों समूह ने दिल्ली और मुंबई में शानदार हवाई अड्डों की शुरुआत की थी। लेकिन 2 जुलाई, 2019 को सीबीआई द्वारा मुंबई और हैदराबाद में जीवीके के कार्यालयों में तलाशी की कार्रवाई होती है। 7 जुलाई को ईडी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया जाता है और 28 जुलाई को इसके अधिकारियों द्वारा जीवीके के कार्यालयों पर भी छापा मारा जाता है और कहा जाता है कि कंपनी के प्रमोटरों के ऊपर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया जायेगा।
फिर पता चलता है कि जीवीके द्वारा मुंबई इंटरनेशनल एअरपोर्ट से अपनी हिस्सेदारी अडानी समूह को बेच दी जाती है। अब इस साल जनवरी 2023 में, सीबीआई द्वारा मुंबई की एक विशेष अदालत को सूचित किया जाता है कि जीवीके समूह के खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में कोई भी सरकारी अधिकारी शामिल नहीं पाया गया और उसके द्वारा उसके ऊपर मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत आरोप नहीं लगाया जा रहा है।
जुलाई में, एक विशेष सीबीआई अदालत द्वारा जीवीके रेड्डी एवं संजय रेड्डी सहित धोखाधड़ी के आरोपी सभी 58 व्यक्तियों के खिलाफ ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी समन आदेश को रद्द कर दिया गया है। जहां तक ईडी के आरोपों का सवाल है, इस बारे में जुलाई 2020 के अंत से इस मामले पर उसने पूरी तरह से खामोशी साध ली है और उसके बाद से सार्वजनिक जानकारी में इस बारे में कोई प्रगति नहीं हुई है।
जीवीके समूह द्वारा मुंबई एअरपोर्ट के अपने मालिकाने को किन परिस्थितियों में अडानी समूह को हस्तांतरित किया गया, के बारे में कॉर्पोरेट जगत में जितनी चर्चा है, उसकी तुलना में सार्वजनिक बहस में बेहद कम जानकारी उपलब्ध है। अब कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा क्या जांच की जा रही है, इस बारे में सिवाय समूह और मंत्रालय के कोई नहीं जानता।
भारतीय समाचारपत्रों और मीडिया समूह ने इस खबर का संज्ञान लेना भी जरूरी नहीं समझा। इस खबर को रॉयटर्स ने साझा किया था। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं मीडिया प्रभारी, जयराम रमेश ने 14 अक्टूबर के दिन रॉयटर्स की खबर साझा करते हुए X पर जरूर इस मामले में टिप्पणी की थी।