चुनाव आयुक्त के इस्तीफे पर कॉन्ग्रेस बनी पत्रकार, नेता बन कर सामने आए रवीश कुमार

आखिरी दो लाइन पर गौर कीजिए, "अगर अरुण गोयल ख़ुद नहीं बताएँगे तो लोग तरह- तरह से सवाल करेंगे। कृपया यह न बताएँ कि निजी और पारिवारिक कारणों से इस्तीफ़ा दिया है।"

रवीश कुमारकई बार व्यक्ति किसी के विरोध में इतना अंधा हो जाता है कि उसे सही चीजें भी गलत दिखने लगती हैं, या जिन बातों का कोई मतलब नहीं होता वो भी तिल का ताड़ बना दी जाती हैं। कई बार तो व्यक्ति अपनी सनक में ‘गलत, गलत, गलत…’ चिल्लाते हुए उस तरह पहुँच जाता है, जहाँ ‘गलत’ लोगों को होना चाहिए, मगर वो अचानक से सही लोग दिखने लगते हैं। कुछ ऐसा ही लग रहा है आजकल रवीश कुमार के साथ। कभी पत्रकार का टैग लगाकर राष्ट्रवादियों को कोसते थे, तो अब यूट्यूबर बनकर पानी-पी पीकर कोसते हैं। ये अलग बात है कि उससे फर्क नहीं पड़ता। ऐसा इसलिए, क्योंकि रवीश कुमार अब स्थाई तौर पर राजनीतिक व्यक्ति बन गए लगते हैं।

यूँ तो बिलो-दि-बेल्ट हमले की उनकी पुरानी आदत रही है, लेकिन इस बार उन्होंने अलग ही रवैया अपनाया है। इस बार वो ‘गलत गलत’ कहते विपक्ष की जगह पहुँच गए हैं, जबकि विपक्ष में वरिष्ठ से वरिष्ठ नेता भी बड़ी शालीनता से सवाल पूछ रहे हैं, जो वाजिब है। ये मामला चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे से जुड़ा है। जिसमें अरुण गोयल ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस्तीफा दे दिया है। हैरानी की बात है कि कल तक अरुण गोयल की तैनाती पर ही छाती पीट रहे रवीश कुमार को अब अरुण गोयल का इस्तीफा खल रहा है। वो खुद को ऐसी स्थिति में देख रहे हैं और सवाल पूछ रहे हैं, जैसे कि उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा हो।

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बात नुकसान की नहीं है, बात है जगह बदल लेने की। देखिए, रवीश कुमार अरुण गोयल के इस्तीफे पर क्या लिखते हैं, “अरुण गोयल ने चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफ़ा दिया है। जब इतना साहस किया ही है तो उन्हें प्रेस कांफ्रेंस करनी चाहिए और कारण बताना चाहिए। क्या उन पर किसी का दबाव था? दबाव किस बात को लेकर था? विपक्ष के राज्यों को लेकर रहा होगा या तारीख़ को लेकर हुआ होगा? क्या वे किसी चीज़ की अति से परेशान थे? क्या उनका ईमान गवाही नहीं दे रहा था कि इसके आगे नहीं हो सकता? चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफ़ा हुआ है। फ़क़ीर का इस्तीफ़ा नहीं है कि झोला लेकर पहाड़ पर चल दिए। अगर अरुण गोयल ख़ुद नहीं बताएँगे तो लोग तरह- तरह से सवाल करेंगे। कृपया यह न बताएँ कि निजी और पारिवारिक कारणों से इस्तीफ़ा दिया है।”

इसमें आखिरी दो लाइन पर गौर कीजिए, “अगर अरुण गोयल ख़ुद नहीं बताएँगे तो लोग तरह- तरह से सवाल करेंगे। कृपया यह न बताएँ कि निजी और पारिवारिक कारणों से इस्तीफ़ा दिया है।” क्यों भाई? माई बाप हो? सुप्रीम कोर्ट हो? ईश्वर हो? हो भी, तो किसी से ऐसे सवाल पूछोगे, जिसमें जवाब अपने मान का मिलने की शर्त रख रहे हो? हैरानी इस बात की भी है कि अरुण गोयल से एक तरफ विपक्ष के नेता शालीन तरीके से सवाल पूछ रहे हैं, तो रवीश कुमार एकदम आदेश दे रहे हैं कि अरुण गोयल ये बताएँ कि उन्होंने निजी और पारिवारिक कारणों को छोड़कर किन कारणो से इस्तीफा दिया है। भला ये कैसा सवाल हुआ?

एक बात का जिक्र मैंने शुरुआत में की थी, कि मैग्सेसे अवॉर्ड पाने वाले रवीश कुमार किस जगह पर पहुँच चुके हैं। वो ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ करते हुए ‘खुद ही भेड़िया’ बन चुके हैं। और भेड़िए, सामने खड़े होकर शरीफ हो गए हैं, क्योंकि वो इस बार बिलो-दि-बेल्ट हमला नहीं कर रहे हैं। वैसे ‘भेड़िया’ शब्द सही नहीं होगा, इसीलिए ‘सही और गलत’ शब्द का इस्तेमाल किया। चूँकि रवीश और उसकी ‘अघोषित’ पार्टी लाइन वाले लोग सीधे न बोलते हैं, न समझते हैं, इसलिए इस तरह से समझाना सही लगता है।

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इस पूरे मुद्दे पर विपक्ष के वरिष्ठतम नेता क्या कुछ बोल सुन रहे हैं, वो भी जान लीजिए। कॉन्ग्रेस पार्टी के महासचिव और मुख्य प्रवक्ता जयराम रमेश ने एएनआई से कहा, “चुनाव आयोग को स्वतंत्र संस्था होना चाहिए, क्योंकि ये संवैधानिक संस्था भी है। अरुण गोयल ने कल (9 मार्च 2024) को इस्तीफा दिया, इसके पीछे मेरे दिमाग में तीन बातें आती हैं। पहला– क्या उनके और मुख्य चुनाव आयुक्त के बीच कोई मतभेद था? या मोदी सरकार से कोई मतभेद, जो संस्थानों को खुद से हाँकने की कोशिश करती है। दूसरा– ये कोई व्यक्तिगत मामला हो सकता है। तीसरा-उन्होंने इस्तीफा दिया, ताकि वो बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ सकें? आने वाले समय में सच्चाई बाहर आ ही जाएगी।”

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष, और कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे संवैधानिक संस्थानों पर सरकार का हमला बताया। उन्होंने चुनाव आयुक्तों को चुनने की प्रक्रिया में बदलाव पर सवाल उठाए, लेकिन रवीश कुमार की तरह ये नहीं कहा कि ‘इस्तीफे की वजह बताओ, और ये-ये वजह छोड़कर कुछ और वजह बताओ।’

खैर, हम बात कर रहे थे रवीश कुमार का, जो विपक्षी नेताओं की जगह पर बैठने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन उनका दामन इतना मैला हो चुका है कि ‘धरती हिल’ चुकी है। वो जो जगह लेने को बेताब हैं, वो जगह भी अपनी जगह बदल चुकी है, लेकिन रवीश कुमार अपनी जिद में ‘मानसिक दिवालिएपन’ की तरफ बढ़ चुके हैं, क्योंकि उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि वो ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ बोलते हुए खुद ‘भेड़िए’ की भूमिका में आ चुके हैं।

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