राजेंद्र गौतम द्वारा जातियों के आधार पर पत्रकारिता को कलंकित करने का नया अध्याय

ये पहले मौका नही था जब दलित और पिछडो का जातिगत बीज हॉकरिया पत्रकार के नेतृत्व में देखने को मिला, देखा जाए तो इस विभाजन की मानसिकता राजेंद्र गौतम की पत्नी द्वारा संचालित समाचार पत्र निष्पक्ष दिव्य संदेश के समाचारों में भी देखने को मिलती है, जहां दलित उत्पीड़न, दलितों पर अत्याचार और ब्राह्मण पत्रकारों पर जाति सूचक मुकदमे और उनके विरुद्ध अनाप-शनाप लिखने का असर दिखाई देता है।

निष्पक्ष दिव्य संदेश से राजेंद्र गौतम और उनकी टीम ने मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार, तत्कालीन अपर मुख्य सचिव सूचना नवनीत सहगल और सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक शिशिर को एक ज्ञापन सौंप कर पत्रकारों के लिए गठित कमेटी में एससी-एसटी और ओबीसी के मान्यता प्राप्त पत्रकारों को शामिल करने की मांग की है।

 

उत्तर प्रदेश के पत्रकारिता में कम समय में करोड़ों की संपत्ति अर्जित करने वाले हॉकर से पत्रकार बने राजेंद्र गौतम यूं तो लोकप्रियता में युवा वर्ग की पसंद थे लेकिन उनके कारनामे, खुलासे और लिखने की भाषा शैली की वजह से लोकप्रियता घटती जा रही है। इनके समाचार पत्र निष्पक्ष दिव्य संदेश को प्रेस काउंसिल आफ इंडिया द्वारा पीत पत्रकारिता का दोषी मानते हुए सेंसरशिप का आदेश जारी किया है और अब पत्रकारिता को जातिगत विभाजन का बड़ा खेल खेलने में लगे है हॉकरिया पत्रकार की पूरी टीम।

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जैसे साधु, संतो की कोई जाति, धर्म नही होता वैसे ही मीडिया या पत्रकारो को किसी जाति, रंग, दल, मज़हब में नही बांधा जा सकता, कलमकारों की कलम जाती, धर्म मे बांध जाएगी तो लिखने वालों की शैली राजेन्द्र गौतम की तरह नज़र आएगी।
कुछ विदेशी एजेंसियों द्वारा अपने एजेंडे के चलते मीडिया को लेकर जाति के सर्वे में मीडिया कर्मियों में ऊंची जाति की मानसिकता वालों को प्रतिनिधित्व दिखाए जाने से कहीं ना कहीं राजेंद्र गौतम को दलित पत्रकारिता और पिछड़ी जातियों को।लेकर पत्रकारिता का विभाजन करने का एक नया मौका मिल गया। प्रशासन के।अधकारियों को ज्ञापन देकर जातिगत आरक्षण की तरह मांग उठाने का मीडिया जगत में भी ज़हरीला बीज बोया गया और इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर वायरल करके दलित, पिछड़ों का स्वघोषित नेता दिखाने का प्रयास किया गया।

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ये पहले मौका नही था जब दलित और पिछडो का जातिगत बीज हॉकरिया पत्रकार के नेतृत्व में देखने को मिला, देखा जाए तो इस विभाजन की मानसिकता राजेंद्र गौतम की पत्नी द्वारा संचालित समाचार पत्र निष्पक्ष दिव्य संदेश के समाचारों में भी देखने को मिलती है, जहां दलित उत्पीड़न, दलितों पर अत्याचार और ब्राह्मण पत्रकारों पर जाति सूचक मुकदमे और उनके विरुद्ध अनाप-शनाप लिखने का असर दिखाई देता है।

पत्रकार हेमंत तिवारी को ठग, राव को जालसाज, गुप्ता को 420 और त्रिपाठी जैसों को ब्लैकमेलर लिखे जाने की मानसिकता स्पष्ट रूप से धर्म और जाति के नाम पर पत्रकारिता को विभाजन करते दिखाई दे रही। किसी भी समाचार को तथ्यों के साथ नहीं लिखा जाता केवल आरोप लगाया जाता है जिसके चलते प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा पांडेय जी पर लगाये दलित छात्र उत्पीड़न के समाचार को गलत और फर्जी रूप में प्रकाशित किये जाने पर समाचार पत्र निष्पक्ष दिव्य सन्देशन को सेंसरशिप करते हुए आदेश पारित किया गया।

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प्रशासनिक अधिकारी अवस्थी जी हो या गोयल साहब या कुलपति पाठक जी के विरुद्ध समाचार पत्र में जिन शब्दावली का प्रयोग किया जाता है वह निम्न स्तर की है और समाचार पत्र की मानसिकता को दर्शाती है, मीडिया की न तो कोई जाति होती है और न धर्म, इस बात को युवा वर्ग का पत्रकार सोच समझ कर जब अपने पत्रकारिता धर्म को निभाने के लिए राजेन्द्र गौतम को आदर्श मानकर आगे आएगा तो ऐसे समाचार पत्रों को देखकर उसकी राह भटकना स्वाभाविक प्रतीत होता है।

 

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