क्या राजदीप सरदेसाई बीएचयू को बदनाम कर रहे हैं?
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी और दिल्ली यूनिवर्सिटी के बाद अब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी टारगेट पर है। कांग्रेस पार्टी के पत्रकार के तौर पर मशहूर राजदीप सरदेसाई ने बीएचयू के बारे में मंगलवार रात अपने चैनल इंडिया टुडे पर एक रिपोर्ट दिखाई जिसमें दावा किया गया कि यूनिवर्सिटी में लड़कियों के साथ भेदभाव होता है और कैंपस उनके लिए कैदखाना बन गया है। इतना ही नहीं देश का गौरव समझी जाने वाली एशिया की इस सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी के लिए राजदीप सरदेसाई ने #BHUShame हैशटैग इस्तेमाल किया। राजदीप ने बड़ी धूर्तता के साथ बीएचयू का पक्ष रखने के लिए एक ऐसे पूर्व छात्र को बिठाया, जिसे मौजूदा स्थिति के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था और आसानी से ये झूठ स्थापित कर दिया कि बीएचयू महिलाओं के लिए कैदखाना है। इसी कार्यक्रम में मनीष शर्मा नाम का एक गेस्ट भी था, जिसे बीएचयू ज्वाइंट एक्शन कमेटी का बताया गया। जबकि सच्चाई ये है कि मनीष शर्मा सीपीआई-एमएल का सक्रिय सदस्य है। राजदीप सरदेसाई पूरे इंटरव्यू में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी नाम बोलते वक्त ‘हिंदू’ शब्द पर ज्यादा जोर देकर बोल रहे थे। जिससे उनका पूर्वाग्रह और छिपा हुआ एजेंडा खुद ही जाहिर होता रहा।
बीएचयू को लेकर लगाए आधारहीन आरोप
राजदीप सरदेसाई ने अपने प्रोग्राम में बीएचयू के महिला महाविद्यालय की 4 लड़कियों से कैमरे पर बात की और दावा किया कि बाकी लड़कियां डरके मारे बाहर नहीं आ रही हैं। पहली नजर में ही प्रायोजित लग रही इन चारों लड़कियों के दावों को बिना किसी जांच-पड़ताल के राजदीप सरदेसाई ने सच मानते हुए ये कार्यक्रम किया। उन्होंने जो बड़े आरोप लगाए और उनकी सच्चाई हम आपको नीचे बता रहे हैं:
1. बीएचयू में लड़कियों को फ्री वाई-फाई सुविधा नहीं: जबकि सच्चाई यह है कि 90 हॉस्टल वाली इस यूनिवर्सिटी में लड़कों के भी कई छात्रावास हैं, जिनमें वाई-फाई नहीं मिलता। ठीक इसी तरह लड़कियों के कुछ हॉस्टल में भी वाई-फाई कनेक्टिविटी नहीं है, जबकि कुछ गर्ल्स हॉस्टल में वाईफाई मौजूद है। बीएचयू देश के कुछ इकलौते विश्वविद्यालयों में से है जहां सबसे पहले फ्री वाई-फाई सुविधा शुरू की गई थी। अभी इसके विस्तार का काम जारी है और कुछ ही दिनों में पूरा विश्वविद्यालय परिसर फ्री वाईफाई ज़ोन घोषित होने वाला है। महिला महाविद्यालय में भी वाई-फाई पर काम जारी है। जबकि राजदीप सरदेसाई ने ऐसे जताया मानो कि वाई-फाई सिर्फ लड़कों के लिए हो, लड़कियों के लिए नहीं।
2. छात्राओं पर पोर्न देखने का आरोप: राजदीप सरदेसाई इस मसले को समझ ही नहीं पाए। एक लड़की ने बोला भी कि अगर कोई अपने मोबाइल में डेटा पैक डालकर देखना चाहे तो उसे कौन रोकेगा। दरअसल मामला बीएचयू की साइबर लाइब्रेरी को लेकर है। कुछ महीने पहले यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जब छापा मारा तो पाया कि वहां आने वाले ज्यादातर छात्र कंप्यूटर पर बैठकर या तो अश्लील वीडियो या फिल्म देख रहे थे। इसके कारण लड़कियों का वहां जाना मुश्किल हो गया था। साइबर लाइब्रेरी की सुविधा पढ़ाई के लिए है। ऐसे में अगर प्रशासन पोर्न देखने वालों पर सख्ती करता है तो क्या इसमें कुछ गलत है। जिन 4 लड़कियों के बयानों के आधार पर राजदीप सरदेसाई ने आरोप लगाए, उन्होंने भी ऐसी कोई बात नहीं कही। राजदीप सरदेसाई बार-बार कहते रहे कि कुलपति जीसी त्रिपाठी ने पोर्न को लेकर ऐसी कोई बात कही है, लेकिन उनके इंटरव्यू में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं था।
3. लड़कियों को नॉनवेज पकाने की छूट नहीं: हॉस्टल के कमरे में खाना पकाने की छूट किसी के लिए नहीं है। न लड़कियों के लिए, न लड़कों के लिए। कुछ लड़के-लड़कियां पहले चोरी से हीटर लगाकर खाना पकाते थे। इसके कारण अक्सर कमरों में आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं। जहां तक मेस की बात है उसे हॉस्टल के ही छात्र-छात्राएं कोअॉपरेटिव सिस्टम से चलाते हैं। अगर किसी हॉस्टल के छात्र-छात्राएं चाहें तो मेस में नॉनवेज खाने पर कोई रोक नहीं है। लेकिन इसके बदले ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं। नॉनवेज खाने की क्वालिटी को लेकर आए दिन लड़ाई-झगड़ों के कारण ज्यादातर छात्र मेस में नॉनवेज खाने के बजाय यूनिवर्सिटी गेट के बाहर मिलने वाले अच्छी क्वालिटी के नॉनवेज फूड को पैक कराकर हॉस्टल में लाकर खाना पसंद करते हैं। सरदेसाई के इंटरव्यू में दिखाई गई लड़की ने भी ये बात मानी है।
4. लड़कियां रात में फोन पर बात नहीं कर सकतीं: ये बेवकूफी भरा आरोप भी राजदीप सरदेसाई ने अपने कार्यक्रम में लगाया। जबकि ये ये नियम इसलिए है, क्योंकि हॉस्टल के कमरों में 2 से 4 लड़कियां तक शेयर करती हैं। अक्सर वॉर्डन के पास शिकायतें आती थीं कि कोई एक लड़की रात-रात भर फोन पर लगी रहती है जिससे बाकी लड़कियों को पढ़ने या सोने में दिक्कत होती है। इंटरव्यू में जिस लड़की ने बताया कि रात में बात करने उसका फोन तोड़ दिया गया, दरअसल उसका फोन यूनिवर्सिटी के किसी अधिकारी ने नहीं, बल्कि खुद लड़की की रूममेट ने गुस्से में तोड़ा था। क्योंकि वो लड़की रात-रात भर किसी से फोन पर बात करती थी, जिससे बाकी रूममेट्स के लिए सोना मुश्किल होता था।
4. हॉस्टल में 8 बजे तक वापस लौटने का नियम: वैसे तो शाम को तय समय पर लौटने का नियम देश के लगभग सभी गर्ल्स हॉस्टल में है। यहां तक कि दिल्ली में भी रात 9 बजे के बाद वापसी पर पहले से सूचना देनी होती है। बीएचयू में भी ये नियम वैसे ही है। बीएचयू को बदनाम करने के उत्साह में राजदीप सरदेसाई भूल गए कि उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था ऐसी नहीं है कि लड़कियों को देर रात तक घूमने की छूट दी जाए। अगर उनके साथ कोई अनहोनी हो जाए तो कौन जिम्मेदारी लेगा। फिर भी अगर किसी लड़की को तय समय के बाद बाहर रहने की जरूरत है तो वो इसके बारे में वॉर्डन को पहले से लिखित जानकारी देकर मंजूरी ले सकती है। दिक्कत उन लड़कियों को जरूर होती है जो ऐसा नहीं करतीं। जाहिर है कि लड़कों पर ऐसी कोई बंदिश नहीं है क्योंकि आम तौर पर उनकी सिक्योरिटी को लेकर वैसा जोखिम नहीं होता। अगर यूपी में कानून-व्यवस्था का इतना बुरा हाल न होता तो शायद लड़कियों के लिए भी 8 बजे तक लौटने के नियम की जरूरत नहीं पड़ती।
5. लड़कियों के लिए ड्रेस कोड है: राजदीप सरदेसाई ने खास तौर पर एक लड़की से ये बयान दिलवाया कि यूनिवर्सिटी में कोई ड्रेस कोड लागू है। यह बात सही है कि बीएचयू की लड़कियां डीयू या जेएनयू की लड़कियों की तरह बहुत मॉडर्न कपड़े नहीं पहनतीं। ज्यादातर लड़कियां सलवार-कुर्ता या जींस-कुर्ता पहनती हैं। पूरे कैंपस में लड़कियां जींस और स्कर्ट में आराम से घूमती देखी जा सकती हैं। जहां तक हॉस्टल के अंदर शॉर्ट्स पहनने पर पाबंदी की बात है, हो सकता है कि किसी वॉर्डन ने इस पर ऐतराज जताया हो। ट्विटर पर बीएचयू के हॉस्टल में रह रही कई लड़कियों ने इस आरोप को झूठा बताया है और कहा है कि वो जो चाहे कपड़े पहनती हैं, कोई उन्हें नहीं रोकता।
6. कैंपस में बहसों और प्रदर्शनों पर रोक: बीएचयू में 90 के दशक के आखिर तक छात्रसंघ चुनाव हुआ करते थे। तब ये विश्वविद्यालय राजनीति का अड्डा बन गया था। तब यहां पढ़ाई का स्तर इतना गिर गया था कि अच्छे छात्र यहां आना भी पसंद नहीं करते थे। चुनावी राजनीति बंद होने के बाद यूनिवर्सिटी की तस्वीर बदल गई और आज बीएचयू एकेडमिक क्वालिटी के मामले में देश भर में नंबर-1 है। भारत ही नहीं, दुनिया भर के छात्र यहां आकर पढ़ते हैं। राजनीतिक विरोध-प्रदर्शनों पर रोक जरूर है, लेकिन हॉस्टलों में विचारधारा और मुद्दों के आधार पर होने वाली बहसों की परंपरा पूरी तरह कायम है। हमने इस बारे में कई छात्रों से बात की, लगभग सभी ने इस बात की पुष्टि की। हां ये जरूर है कि बीएचयू में जेएनयू की तरह भारत के टुकड़े करने या कश्मीर की आजादी की मांग करने की कोई गुंजाइश नहीं है। राजदीप सरदेसाई अगर इसे बुराई मानते हैं तो वो ऐसा मानने के लिए स्वतंत्र हैं।