संस्था के एक आला अधिकारी बार-बार उच्च अधिकारियों को फोन कर रहे हैं कि FIR नहीं होनी चाहिए किसी क़ीमत पर

शर्म हो तो साथ दीजिए- जब हम किसी और की बेटी को सता रहे होतें हैं आरोपी को बचा रहे होते हैं-जांच से भाग रहे होते हैं उस समय हम अपनी और अन्य बेटियों के लिए नए भेड़िए और गिद्ध तैयार कर रहे होते हैं।

ज़ीनत सिद्दीक़ी

सुनने में आया है कि संस्था के एक आला अधिकारी बार-बार उच्च अधिकारियों को फोन कर रहे हैं कि FIR नहीं होनी चाहिए किसी क़ीमत पर।

उनसे मेरा एक ही प्रश्न है मेरी जगह आपकी बेटी होती तो आप जानलेवा तरीके से बंधक बनाने वालों और बंधक बनाने के लिए षडयंत्र करने वालों को क्या अपने घर दावत पर बुलाते या मेरी तरह आप भी पुलिस थाने ही जाते। FIR की मांग करते?

ईश्वर न करे किसी बच्ची के साथ ऐसा कुछ सपने में भी हो। शर्म हो तो साथ दीजिए- जब हम किसी और की बेटी को सता रहे होतें हैं आरोपी को बचा रहे होते हैं-जांच से भाग रहे होते हैं उस समय हम अपनी और अन्य बेटियों के लिए नए भेड़िए और गिद्ध तैयार कर रहे होते हैं।

दरणीय अधिकारी गण, दिनांक 5 फरवरी को मैनें नोएडा 20 थाने में आकर लिखित में Wrongful Restraint And Wrongful Confinement, छेड़छाड़, सामान छीनना, इत्यादि की शिकायत पुलिस को दी थी, अभी तक भी आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज नहीं हुई है, स्वंय उच्च अधिकारियों द्वारा मुझे दिनांक 6 फरवरी को शाम के वक्त एक दिन बाद FIR दर्ज हो जाने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन अभी तक भी मेरी शिकायत दर्ज नहीं हुई।

मैं हैरान हूं कि पुलिस विभाग मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी की महिला सुरक्षा को लेकर अपनाई गई ज़ीरो टॉलरेंस की नीति को क्यों और किसके दबाव में स्वीकार नहीं कर रहा, ये परंपरा डरावनी है।

मैनें पुलिस को Wrongful Restraint And Wrongful Confinement की शिकायत, दी पुलिस उस पर काम न कर के POSH के मामले की जांच में समय व्यर्थ कर जांच को गलत दिशा देने का प्रयत्न कर रही है। कृपया शीघ्र अति-शीघ्र मेरी शिकायत दर्ज करने की कृपा करें, मेरा एक-एक क्षण जीवन-मरण का प्रश्न बना हुआ है।

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शनिवार से मैं ठीक से सोई नहीं हूं, क्या खाया-क्या पीया मालूम नहीं, मुंह में भयंकर कड़वापन है, हर वक्त उल्टी होने को रहती है, इतनी तेज़ घबराहट होती है कि अब प्राण निकले, मन शांत नहीं हो पाता, शरीर से जो दहशत के मारे खून बहा वो अलग, घर से बाहर निकलने में डर रहता है वो भी अलग, कितना खुल कर बोलूं और क्या ही छिपाऊं, नींद और थकान से आंखे फट के बाहर होने को हैं लेकिन मन मस्तिष्क में दहशत है।

मां-पापा को बताने की हिम्मत नहीं दोनों सदमें से मर जाएंगे, घुमा फिर कर कुछ कुछ बता रही हूं, परिवार की चिंता खाए जा रही है सो अलग। सारे कष्ट एक तरफ और दिल कह रहा है चाहे जान जाए ये आतंक तो नहीं बर्दाश्त करूंगी जीते जी, और वो भी तब जब पीछे अनगिनत बच्चियों की कतार लगी है।

अपने ही लिए लड़े-अपने ही लिए जिए- तो क्या लड़े और क्या जिए लानत-जीवन वास्तव में धर्मयुद्ध है मेरे भाई, हाथ थाम कर साथ देना, जीवन बहुत आभारी होगा, मुझे ताक़त मिलेगी।

 

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