लखनऊ के विश्वसनीय अखबार ने छापी चोरी की बाइलाइन
यह खबर राजधानी लखनऊ से प्रकाशित दैनिक प्रभात के पृष्ठ संख्या 2 पर 27 सितंबर 2014 के अंक में शीर्षक स्मारक की राजनीति में पीछे छूटी किसानों की समस्याएं प्रकाशित हुई थी।
वही खबर द मिड डे एक्टिविस्ट में 30 सिंतबर के अंक में पृष्ठ संख्या 4 पर खोयी जमीन वापस पाना चाहते हैं अजित शीर्षक खबर हेमंत निगम के नाम से प्रकाशित हुई।
देश के सबसे विश्वसनीय तीन पत्रकारों की छत्रछाया में राजधानी लखनऊ से बीती 27 सितंबर को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथों लांच हुये सांध्यकालीन दैनिक द मिड डे एक्टिविस्ट के पत्रकारों और पत्रकारिता की विश्वसनीयता की हवा 72 घंटे में ही निकल गयी। चोरी की खबर छापकर मिड डे एक्टिविस्ट ने पत्र और पत्रकारिता दोनों की विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा करने का काम किया है। अखबार के इस कारनामें से युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा को भी गहरी ठेस पहुंचाई है। आखिरकर जिस पत्र के दर्जनों होर्डिंग सूबे के मुख्यमंत्री की फोटो के साथ लगे हों। जिस पत्र के संपादकों व प्रबंधन पर भरोसाकर मुख्यमंत्री नये-नवेले पत्र की लांचिंग की हो। जिस पत्र के कर्ताधर्ता स्वयं अपने को देश का सबसे विश्वसनीय पत्रकार बता रहे हों। अगर वहीं पत्र अपनी लाचिंग के 72 घंटे के भीतर चोरी की खबरें छापे तो पत्रकारों की विश्वसनीयता पर तो सवालिया निशान लगता ही है। पत्र का यह कृत्य कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा व साख को भी चोट पहुंचाता है। गौरतलब है विश्वसनीय पत्रकारों के नेतृत्व में अविश्वसनीय कार्य करने वाली टीम ने 30 सिंतबर के अंक में पृष्ठ संख्या 4 पर खोयी जमीन वापस पाना चाहते हैं अजित शीर्षक खबर हेमंत निगम के नाम से प्रकाशित हुई। असल में यह खबर राजधानी लखनऊ से प्रकाशित दैनिक प्रभात के पृष्ठ संख्या 2 पर 27 सितंबर 2014 के अंक में शीर्षक स्मारक की राजनीति में पीछे छूटी किसानों की समस्याएं प्रकाशित हुई थी। खबर को दैनिक प्रभात के विशेष संवाददाता आशीष वशिष्ठ ने लिखा था। विश्वसनीय पत्रकारों की टीम ने दैनिक प्रभात की खबर तो चोरी की ही, वहीं सीनाजोरी में भी कोई कसर बाकी नहीं रखी। विश्वसनीय पत्रकारों की टीम ने अथक मेहनत कर खबर का शीर्षक बदला और दैनिक प्रभात के पत्रकार आशीष वशिष्ठ के नाम के स्थान पर द मिड डे एक्टिविस्ट का काम-काज देख रहे वरिष्ठ पत्रकार हेमंत निगम का नाम लिखने का महान कार्य भी किया। ‘द मिड डे एक्टिविस्ट की लाचिंग से पूर्व राजधानी लखनऊ के मुख्य चैराहों और मार्गों पर दर्जनों विशालकाय होर्डिंग लगाकर ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया गया था कि होर्डिंग में दिखाये गये तीन पत्रकार देश के सबसे विश्वसनीय पत्रकार है। और उनके अलावा राजधानी व देश के तमाम पत्रकार या तो विश्वसनीय नहीं है या उनकी विश्वसनीयता संकट में है। अखबार के प्रधान संपादक न्यूज चैनल समाचार प्लस के कर्ताधर्ता उमेश कुमार हैं। स्थानीय संपादक राजधानी के तथाकथित विश्वश्नीय पत्रकार संजय शर्मा हैं। संजय शर्मा ने पत्रकारों की एक ऐसी टीम जुटाई है जिसके पास खबरों की समझ व लिखने की क्षमता ही नहीं है। तभी तो मजबूरन लांचिंग के तीन दिनों में ही चोरी की खबरें छापने को उन्हें मजबूर होना पड़ा। खुद को विश्वसनीय बताने वालों ने चोरी कर अपने साथ पूरी पत्रकारिता को ही अविश्वसनीयता के गड्डे में धकेलने का काम किया है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि, ऐसे ही लो-ों की वजह से आज पूरी पत्रकारिता की साख संकट में हैं। मजा तो तब है जब समाज और आम आदमी की और से विश्वसनीयता का प्रमाण पत्र मिले।
(एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा भेजे गये पत्र पर आधारित।)