BIG NEWS: मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के नाम पर हो रही लाखों की लूट
भारतीय संस्कृति उत्सव में केंद्रीय नेताओं, भाजपा के नामचीन नेताओं व वरिष्ठ पत्रकारों के नाम का दुरुपयोग कर आयोजक कर रहे लाखों की वसूली
हमारे संवाददाता से बातचीत में मुख्यमंत्री और गृहमंत्री समेत कई मंत्रियों व पत्रकारों ने किया कार्यक्रम में जाने से इंकार
कई मंत्रियों ने कार्यक्रम की जानकारी तक से किया इंकार
प्रसिद्ध लोकगायिका मालिनी अवस्थी पहले ही दर्ज करा चुकी हैं शिकायत
राजधानी के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में चल रहा सात दिनी महोत्सव
लखनऊ । राजधानी के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में इन दिनों सात दिवसीय भारतीय संस्कृति उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। बीते आठ जून से आगामी 14 जून तक चलने वाले इस महोत्सव को आयोजकों ने लूट का माध्यम बना लिया है। इस महोत्सव में बिना किसी शख्सियत को सूचना दिये या फिर बिना उसके कार्यक्रम में आने की स्वीकृति पाये बिना आयोजकों ने उनके नाम को न केवल अपने प्रचार-प्रसार का माध्यम बनाया बल्कि निमंत्रण पत्र में भी प्रकाशित कराया। इस पत्र में छोटे-मोटे नेताओं नहीं बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वित्त राज्य मंत्री शिवप्रताप शुक्ल, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, डा. दिनेश शर्मा, औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना, पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय, भाजपा के बिहार के संगठन मंत्री नागेेंद्र नाथ, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री महेश शर्मा, राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह, गोवा के राज्यपाल मृदुला सिन्हा, सांसद मनोज तिवारी, नगर विकास मंत्री सुरेश कुमार खन्ना, भाजपा संगठन मंत्री सुनील बंसल, बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह आदि का नाम आयोजकों ने इस्तेमाल किया है। जबकि सरिता प्रवाह से बातचीत में इन सभी नेताओं ने न ही आयोजन में जाने में सहमति जतायी न ही निमत्रंण का स्वीकार किया जाना बताया।
इन सभी का कहना है कि वह आयोजन में शिरकत नहीं करेंगे। केवल इतना ही नहीं आयोजकों ने राजधानी के प्रतिष्ठित शिक्षाविद जगदीश गांधी, सुधीर हलवासिया, वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र, संजय तिवारी और सरिता प्रवाह के संपादक राजेश श्रीवास्तव आदि का नाम भी प्रकाशित कराया है। इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि इस कार्यक्रम में उनका किसी तरह का कोई योगदान नहीं है। वह किसी भी तरह के इसके संयोजक नहीं हैं न ही इसके लिए उनकी सहमति ली गयी है। श्री मिश्र कहते हैं कि इस तरह के आयोजन में उनके नाम का प्रयोग कर छवि खराब करने की कोशिश की गयी है। वह कहते हैं कि मैं उद्घाटन सत्र में सिर्फ एक पत्रकार होने के नाते गया था। लेकिन नाम प्रकाशित करने के लिए मेरी स्वीकृति नहीं ली गयी। संजय तिवारी कहते हैं कि आयोजकों न केवल उनका नाम बल्कि सभी नाम फर्जी तरीके से प्रकाशित कराये हैं। शिक्षाविद जगदीश गांधी कहते हैं कि उनको तो निमंत्रण पत्र तक नहीं दिया गया है। बल्कि राजनाथ सिंह से सम्मानित कराने के नाम पर लंबी-चौड़ी सहयोगी राशि मांगी गयी थी जिसको देने से उन्होंने साफ इंकार कर दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय से बताया गया कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में इस तरह का कोई जिक्र नहीं है। जिस दिन उद्घाटन था उस दिन वह लखीमपुर व सीतापुर में थ्ो। दरअसल इसके पीछे का सच जानने का प्रयास करें तो साफ हो जाता है कि यह पूरा ख्ोल लाखों की वसूली के लिए रचा गया। बड़े-बड़े नेताओं से संबंध बताकर लोगों से सम्मानित कराने के नाम पर उगाही की गयी।
राजनाथ सिंह से 51 लोगों को सम्मानित करने की सूची आयोजकों ने तय की है। आयोजकों ने पचास लाख लोगों के इस आयोजन में शिरकत होने की बात कही है। जबकि प्रतिष्ठान का एक क्यूब भरने में आयोजकों को छींके आ रही हैं। मुख्य प्रायोजक से 2० लाख, सह प्रायोजक से दस लाख, उप प्रायोजक से 5 लाख और उप सह प्रायोजक से दो लाख की वसूली की गयी। स्मारिका के नाम पर अंतिम कवर पृष्ठ पर 1० लाख से लेकर तीस हजार तक की वसूली की जा रही है। जबकि आयोजन समाप्ति की ओर बढ़ रहा है और अब तक कोई स्मारिका छपी ही नहीं है। इस आयोजन में अभी दो दिन पूर्व ही गायिका मालिनी अवस्थी ही अपने नाम का प्रयोग करने पर भारी नाराजगी जतायी थी और अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट भी दर्ज की है। कहा जा रहा है कि सम्मानित कराने के नाम पर, पत्रिका में विज्ञापन के नाम पर, बड़े नेताओं से संपर्क के नाम पर आयोजकों ने अब तक कई लाख रुपये की वसूली कर ली है। अब देखना यह है कि समापन के नाम पर जिस तरह बढ़ा-चढ़ा कर राजनाथ सिंह के नाम का प्रयोग किया जा रहा है। उसमें आयोजक कितने सफल होते हैं। आरोप है कि आयोजकों ने राज्यपाल से पहले दिन ही चार लोगों को सम्मानित कराया जिसमें से एक लोगों से तकरीबन लाखों की वसूली की गयी। आयोजकों ने इसी तरह पूर्व में राजधानी से एक हिंदी दैनिक अखबार का भी संचालन किया था। जहां के भी कई लोगों का भारी-भरकम वेतन बकाया होने पर संस्थान बंद कर दिया गया था।