फर्जी पत्रकार, फर्जी मान्यता और तो और मान्यता समिति के चुनाव के फर्जी वोटर्स …………..

ऐसे ही फर्जी कागजों से मान्यता पाये तथाकथित पत्रकारों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ल भी कुछ दिन पहले अपनी चिंता से सबको अवगत करा चुके हैं. फर्जी मान्यता लिए तथाकथित पत्रकारों जो अब मान्यता समिति के हो रहे चुना के फर्जी वोटर भी हैं को लेकर जो पत्र उन्होंने लिखा जो चिंता जताई है उसे जरुर पढ़िए और सोचिये की ऐसे फर्जी मान्यता वाले फर्जी वोटर होंगे तो चुनाव निष्पक्ष कैसे होगा.

एस .पण्डित  की रिपोर्ट


कैसे होगा निष्पक्ष चुनाव जब फर्जी वोटरों की है भरमार


जनरल मैनेजर विनीत मौर्या को फर्जी कागजो पर किसने दिलवाई राज्य मुख्यालय की मान्यता ये एक बड़ा सवाल है


इनसे मिलिए ये हैं विनीत मौर्या जीएम जनसंदेश टाइम्स लखनऊ, ये जनसंदेश टाइम्स के जीएम हैं इस बात को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है क्योकि इनके जीएम होने के बाद से जनसंदेश टाइम्स ने सिर्फ पतन ही देखा है, इनकी कारगुजारियों को लेकर भड़ास ने समय-समय पर लगभग दो दर्जन से ज्यादा खबरें चलाई हैं,

जनसंदेश टाइम्स शुरू से विवादों में रहा है. अखबार में संपादक से लेकर मैनेजर समय-समय पर बदलते रहे हैं और सबके सब एक के बाद एक विवादों को जन्म देते रहे हैं. इधर कुछ समय से लगातार विनीत मौर्या जीएम की कुर्सी पर जमे हुए हैं. विनीत मौर्या ने अपने संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों का शोषण करने का एक नया कीर्तिमान बनाया है. सैलरी कभी समय से न देना या चार-चार महीने, तीन-तीन महीने पर आधी सैलरी देना जनसंदेश की नियति बन गई है. इसी से तंग आकर साठ प्रतिशत कर्मचारियों ने नया ठिकाना ढूंढ लिया. बाकी जो किन्हीं कारणों से कहीं नहीं जा सकते उनका जीएम विनीत मौर्या जमकर शोषण कर रहे हैं.

जिन कर्मचारियों ने लिखित तौर पर जनसंदेश को छोड़ा उनकी सैलरी को विनीत मौर्या ने रोक लिया. संस्थान में आए दिन गाली-गलौज होता रहता है और विनीत मौर्या या तो संस्थान नहीं आते या आकर भी किसी दूसरे कमरे में छुपकर बैठ जाते ताकि लोगों का सामना न करना पड़े.

निचे जो ख़बरों के लिंक दिए गए हैं उनका बस एक ही लब्बोलुआब है कि जनसंदेश टाइम्स  के जीएम ने सूचना विभाग में फर्जी कागजों को लगाकर राज्य मुख्यालय की मान्यता ले रखा है. ऐसे ही फर्जी कागजों को लगाकर मान्यता पाये तथाकथित पत्रकार ही मान्यता समिति के चुनाव में फर्जी वोटर भी हैं जिनकी संख्या 200 से 300 तक है.

ऐसे ही फर्जी कागजों से मान्यता पाये तथाकथित पत्रकारों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ल भी कुछ दिन पहले अपनी चिंता से सबको अवगत करा चुके हैं. फर्जी मान्यता लिए तथाकथित पत्रकारों जो अब मान्यता समिति के हो रहे चुना के फर्जी वोटर भी हैं को लेकर जो पत्र उन्होंने लिखा जो चिंता जताई है उसे भी नीचे दिया जा रहा है उसे जरुर पढ़िए और सोचिये की ऐसे फर्जी मान्यता वाले फर्जी वोटर होंगे तो चुनाव निष्पक्ष कैसे होगा.

ज्ञानेंद्र शुक्ला

ये पत्र उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त पत्रकार संघ के चुनाव के सिलसिले में पत्रकार बिरादरी को संबोधित करके लिख रहा हूं:
दरअसल, यूपी की राजधानी में बड़ी संख्या में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार कार्यरत हैं। कुछ दशक पूर्व जब कई पार्टियों की प्रेस कांफ्रेस एक साथ हो जाती थी तब पत्रकारों के सामने असमंजस की स्थिति पेश आती थी। इस समस्या के समाधान के लिए तत्कालीन वरिष्ठ पत्रकारों ने आपसी सहमति से एक कमेटी बनाई थी जिसका कार्य था सभी दलों के साथ तालमेल रखना जिससे प्रेस कांफ्रेस एक साथ न होने पाए और पत्रकारों को अड़चन न हो।

वैसे तो सब सुचारू तरीके से चलता रहा लेकिन वक्त के साथ साथ कुछ तत्वों ने निहित स्वार्थ में कमेटी की शक्तियों का इस्तेमाल अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में करने लगे। कमेटी पर निरंतर निर्बाध काबिज रह सकें इसलिए अपने रसूख और तत्कालीन सत्ताओं में पकड़ का फायदा उठाकर कुछ ऐसे लोगों को मान्यता दिलवा दी जिनका पत्रकारिता से लेना देना ही नहीं था। इससे हासिल हुए संख्याबल के जुगाड़ से ये चुनाव जीतने लगे। सत्ताशीर्षों के सामने ये खुद को सभी पत्रकारों के रहनुमा के तौर पर पेश करते थे तो पत्रकारों के हित के लिए कोई भी नीति बनाने के लिए सत्ताधीश भी इन्हीं से संवाद करने लगे। चूंकि पत्रकारों की एक बड़ी जमात या तो जिस संस्थान में कार्यरत है उसके लिए दिनरात खबर जुटाने में लगे रहते हैं या फिर अपने लघु अखबार और मैगजीन को संचालित करने की जद्दोजेहद में लगे रहते हैं।

कमेटी के उच्च पदाधिकारी अपने निहित लाभ में इस कदर लिप्त हुए कि बाकी पत्रकारों की जायज जरूरतों की ओर ध्यान देने की इन्हें कभी फुर्सत ही नहीं रही, ये बात आम पत्रकारो को अखरने लगी, इनकी ओर से विरोध के सुर उठने लगे। ऐसे ही विरोध के कुछ सुर जब एकाकार हुए तब तमाम साथियो के तीव्र आग्रह पर साल 2021 में हुए पत्रकारों के चुनावी मुकाबले में मैंने भी इन तत्वों के खिलाफ एकदम आखिरी मौके पर ताल ठोंक दी। कई वर्षों से कमेटी शीर्ष पर विराजे शख्स के खिलाफ मैं मैदान में था तो यूपी से लेकर देश के तमाम हिस्सों कई दर्जन अखबारों के मालिक एक अति धनाड्य शख्स भी चुनाव मैदान में था। धन के बूते पर लोगों को उपकृत करने का चुनावी खेल इस कदर खेला जा रहा था कि मेरे हितैषी तमाम वरिष्ठ पत्रकार मानने लगे थे कि मैं विगत वर्षों में चुनाव में उतरे बाकी पत्रकारों के मानिंद पचास वोटों के इर्दगिर्द सिमट जाउंगा, पर बेहद कम अवधि में हुए चुनाव प्रचार के दौरान सबसे निजी संपर्क न कर पाने, क्षुद्र चुनावी हथकंडों की काट न कर पाने की विवशता के बावजूद मैं दो सौ करीब वोटों के आंकडे तक पहुंचकर रनर बन गया, धनबल के जरिए चुनावी मैदान उतारे प्रत्याशी को पत्रकारों ने तीसरे पायदान पर पहुंचा दिया।

चूंकि मैं बेहद आम पत्रकार हूं तो एकबारगी चुनावी प्रक्रिया खत्म हुई मैं पुन: पत्रकारिता-परिवार-समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करने में जुट गया। पर चुनाव लड़ना ही जिनका पेशा है वो लगातार इसी मिशन में सक्रिय हो गए। अब एकबारगी फिर से चुनावी प्रक्रिया शुरु हुई है, आम पत्रकारो की इच्छा के विरुद्ध कतिपय जनों के अहं की वजह से दो गुटों में चुनाव प्रक्रिया हो रही थी पर कुछ वरिष्ठों के आशीर्वाद व युवा साथियों की उर्जा के मेलजोल से खांचेबाजी की इस शर्मनाक प्रक्रिया का अंत हुआ और कमेटी का एकजुट चुनाव होना तय हुआ है। चूंकि मेरे जैसे सैकड़ों पत्रकार साथी हैं जिनके लिए किसी चुनावी गुणागणित के बजाए अपने काम को तरजीह देना और पत्रकारीय गरिमा की बहाली कराना सर्वोच्च प्राथमिकता है।

ये मेरी ही नहीं बल्कि बड़ी तादाद में कार्यकारी पत्रकारों की भावना है कि अगर कमेटी के शीर्ष पर वर्षों से काबिज तत्व हटें तो उनकी जगह सिर्फ और सिर्फ पत्रकारिता को समर्पित रहे आम पत्रकार आएं, देश के कोने-कोने तक अपना कारोबार फैलाए किसी धंधेबाज, धनपशु का काबिज होना भी मौजूदा दुर्दशा सरीखा ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा। लघु अखबार और पत्रिकाओं के प्रकाशन के जरिए अपने परिवार और पत्रकारिता के अस्तित्व को बचाए रखने में जुटे तमाम साथियों ने मुझसे अपनी भावना साझा करते हुए दो टूक कहा कि जो लोग खुद कारोबारी है उनकी प्राथमिकता स्वजन हिताय-स्वजन सुखाए से इतर कभी नहीं हो सकेगी। ऐसे लोगों का अँशमात्र समर्थन न पहले कभी किया न भविष्य में कभी करूंगा। पत्रकारिता-पत्रकार-समाज के लिए मेरा जुड़ाव-लगाव-समपर्ण किसी चुनाव का न पहले कभी मोहताज था न है न भविष्य में रहेगा।

 

 

इस मुद्दे पर विस्तृत ब्यौरे के साथ चर्चा आगे भी जारी रहेगी।

 

शुभकामनाएँ ज्ञानेंद्र भाई
Gyanendra Shukla
@gyanu999

 

जीएम कौन, विनीत मौर्या या विनोद वर्मा !

हद हो गयी है ! हरे प्रकाश के बाद अब विनायक राजहंस हुए सुभाष राय और विनीत मौर्या के शिकार

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और भी बहुत सी खबरें हैं जो ये बताती है कि विनीत मौर्या जनसंदेश टाइम्स के जीएम थे और वर्तमान में भी जीएम ही हैं

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